SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकाग्रता की भूमिका में पहुंच जाऊंगा। उसे इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए मानव संसाधन पर विचार करना होगा। कौन गुरु होगा, जो वहां तक पहुंचा दे। बहुत लोग अनेक वर्ष ध्यान करने के बाद भी एकाग्रता की स्थिति में नहीं पहुंच पाते। वे निराश होकर कहते हैं-दस वर्ष तो हो गए, किन्तु मन की एकाग्रता नहीं सध रही है। एक भाई ने कहा-बहुत वर्षों से ध्यान कर रहा हूं, पर मन की चंचलता कम नहीं हो पा रही है। इसके लिए आवश्यक हे शिक्षक और पथदर्शक, जो विधि बताए, अभ्यास ठीक कराए और यह वेश्वास जगा सके-इस विधि से तुम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हो। पदार्थ संसाधन दूसरा तत्त्व है पदार्थ संसाधन । वस्तु सामग्री भी बहुत आवश्यक है। ध्यान की भी वस्तु होती है। ध्यान की वस्तु का चयन करें, जिससे लक्ष्य तक शीघ्र पहुंचा जा सकता है। द्रव्य का योग प्रत्येक वस्तु में होता है। हम कोई भी काम करें, निमित्त की भी आवश्यकता होती है। केवल उपादान पर ही हम वल नहीं सकते। हमारी सारी संरचना इस प्रकार की है, जिसमें निमित्त और उपादान-दोनों की अपेक्षा रहती है। हम द्वन्द्वात्मक जीवन जीते हैं, द्वन्द्व की दुनिया में जीते हैं, इसलिए दोनों पर ध्यान केन्द्रित करना जरूरी है। जहां उपादान जरूरी है, वहां साथ में निमित्त भी जरूरी है। हम एकान्त निश्चय में चले जाएं-जैसा उपादान है, मूल कारण है, वैसा हो जाएगा। यह किसी और दुनिया में होता होगा, हमारी द्वन्द्वात्मक दुनिया में तो ऐसा नहीं होता। उसमें हमेशा निमित्त की अपेक्षा रहती है और इसीलिए पदार्थ संसाधन की उपयोगिता से नकारा नहीं जा सकता। चुनाव करें ? आवश्यक काम का चुनाव करना होता है। जीवन में कार्यों की कोई कमी नहीं है, पर जो सबसे अधिक आवश्यक है, उसका चुनाव करें। हम ध्यान का निदर्शन लें। एक लक्ष्य बना लिया-एक वर्ष में एकाग्रता की भूमिका पर पहुंचना है तो उसके लिए क्या करें ? उसके लिए आवश्यक है-दीर्घश्वास का प्रयोग, कायोत्सर्ग का प्रयोग। ये साधन वहां तक ले जाने समय का प्रबंधन : ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy