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महीने में कौन-सा काम करना है अथवा आज कौन-सा काम करना है। प्राथमिकता का चुनाव करना होता है। जो अनिवार्य आवश्यकता है, उसका
चुनाव करें। लक्ष्य भी निर्धारित है और उसकी समयावधि भी निश्चित है। किन्तु जब तक लक्ष्य की पूर्ति में केन्द्रित नहीं होंगे, समय बीत जाएगा, कार्य पूरा नहीं होगा। लक्ष्य के प्रति केन्द्रित होना, उसी के प्रति समर्पित होना, उसी के प्रति जागरूक रहना सफलता का पहला सूत्र है। समय प्रबंधन का सूत्र प्रेक्षाध्यान का एक सूत्र है भावक्रिया। भावक्रिया समय प्रबन्धन का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है। जिस समय जो काम करो, उस समय उसके प्रति समर्पित रहो। यह है वर्तमान में जीना। व्यक्ति भविष्य की कल्पना करता है, लक्ष्य बना लेता है किन्तु क्रियाकाल में वर्तमान में रहता है। यदि कल्पना भविष्य की करें और कार्य करते समय भी भविष्य में चले जाएं तो वर्तमान खाली चला जाएगा, कार्य नहीं होगा। वर्तमान के प्रति जागरूक रहने का अर्थ है-यह काम इसी क्षण में ही करना है। बहुत लोग यह अनुभव करते हैं-बस दो मिनट की देर हुई और ट्रेन छूट गई। यह दो मिनट की शिकायत चलती रहती है। ठीक समय का नियोजन नहीं होता है तो ट्रेन छूट जाती है। जिस समय जो काम करना है, उस समय उसके प्रति समर्पित हुए बिना सफल नहीं हो सकते।
मानव संसाधन प्रश्न है-लक्ष्य पूर्ति के संसाधन क्या हैं ? प्रेक्षाध्यान के सन्दर्भ में चर्चा करें तो उसके दो संसाधन हैं-एक मानव संसाधन और दूसरा पदार्थ संसाधन । जो लोग कारखानों का निर्माण और राज्य व्यवस्था के संचालन पर विचार करते हैं, समय नियोजन की दृष्टि से उनके पास तीन संसाधन हो जाते हैं-मानव संसाधन, पदार्थ संसाधन और अर्थसंसाधन। किन्तु जब हम अध्यात्म के परिप्रेक्ष्य में चर्चा करते हैं तो धन प्रमुख संसाधन नहीं हो सकता। एक व्यक्ति ने सोचा-मन बहुत विक्षिप्त है, क्षिप्त है, इसके नियंत्रण में एक वर्ष का समय लंग जाएगा। संकल्प कर लिया-मैं एक वर्ष में बिल्कुल
८४ : नया मानव : नया विश्व
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