________________
समय का प्रबंधन
कार्य की निष्पत्ति समय सापेक्ष है । यदि समय के प्रबंधन पर व्यक्ति ध्यान न दे तो सफलता की संभावनाएं धूमिल हो जाती हैं। समय का सम्यक् - नियोजन नहीं होता है, तो कार्य ठीक नहीं होता । मैनेजमेंट के अनेक पहलू हैं। जैसे टाइम का मैनेजमेंट है, वैसे ही स्पेस का मैनेजमेंट होता है । क्षेत्र का सम्यक् नियोजन न हो तो कार्य में सफलता नहीं मिलती। मैनेजमेंट का एक पहलू है भाव । महावीर ने प्रत्येक कार्य की चार दृष्टियों से मीमांसा की - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । इन चारों के समुच्चय से ही कार्य की सफलता संभव बनती है । सब कुछ हो और समय का प्रबंधन न हो तो वांछित परिणाम समय पर नहीं मिल सकता। कार्य और समय को अलग-अलग नहीं बांटा जा सकता । कार्य कोई भी हो, उसके साथ समय आएगा ही । कहीं वह प्रकट हो जाता है, कहीं छिपा रहता है। व्यक्ति अनेक काम करता है और सफलता के लिए उसे कुछ करना ही होता है ।
प्राथमिक लक्ष्य
( सबसे पहला प्रश्न है- लक्ष्य क्या है ? लक्ष्य का निर्धारण पहली शर्त है । जो बिना लक्ष्य के चलेगा, उसे सफलता नहीं मिलेगी । लक्ष्य के निर्धारण में एक बात पर ध्यान देना अपेक्षित है और वह है प्रायोरिटी की, प्राथमिक लक्ष्य की। सबसे पहले कौन-सा अनिवार्य काम है, जो अभी करना चाहिए । दस वर्ष अथवा पांच वर्ष का लंबा समय है । उसमें अनेक कार्य किए जा सकते हैं। प्राथमिकता का चुनाव यह है - इस वर्ष कौन-सा काम करना है । इस
समय का प्रबंधन : ८३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org