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________________ होते ही आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं I व्यक्ति और समाज को बदलना सरल काम नहीं है । व्यवस्था को बदलना कठिन है किन्तु व्यक्ति और समाज को बदलना अति कठिन है । इस कठिनाई ने प्रेक्षाध्यानं का नया आयाम खोला। हमने देखा - लम्बे समय तक व्यवस्था और दण्डशक्ति की छत्रछाया में पलने वाला व्यक्ति और समाज बाहर से सुन्दर लगता रहा किन्तु उसका भीतरी रूप सुन्दर नहीं बन सका । आदमी भीतर में सुन्दर बने। उसके लिए आवश्यक है हृदय परिवर्तन, विज्ञान की भाषा में रासायनिक परिवर्तन । प्रेक्षा ध्यान के प्रयोग अन्तः सौन्दर्य के प्रयोग हैं। आत्मविश्वास, सहिष्णुता, धैर्य, संवेग संतुलन के लिए प्रेक्षाध्यान का अभ्यास बहुत मूल्यवान् है । यदि हमने एकाग्रता का मूल्यांकन किया होता तो समाज का धरातल बहुत ऊंचा होता । चंचलता और विक्षेप ने दुःख और दौर्मनस्य की परंपरा को आगे बढ़ाया है। समाधि और मानसिक शान्ति का मूल्य आंकने वाला स्वयं को ही नहीं बदलता बदलने के पूरे चक्र को गति देता है । बदलने की प्रक्रिया कब से शुरू होनी चाहिए, यह प्रश्न जितना गंभीर हैं, उतना ही महत्त्वपूर्ण है । यदि विद्यार्थी को बदलने का गुर मिल जाए, प्रशस्त संस्कार के निर्माण और अप्रशस्त संस्कार के उन्मूलन का सूत्र हाथ लग जाए तो वह हर क्षेत्र में सफलता का जीवन जी सकता है। इस संकल्पना के साथ जीवन - विज्ञान का प्रयोग शुरू हुआ । विद्या ददाति विनयम् तथा 'सा विद्या या विमुक्तये' जैसे घोष इतिहास की वस्तु बनते जा रहे हैं। उन्हें वर्तमान के पीठ पर आसीन करना, यह युग मांग रहा है। विनम्रता और सहिष्णुता, धैर्य और सौहार्द, करुणा और संवेदनशीलता के अभाव में क्या कोई भी व्यक्ति और समाज तनावमुक्ति का जीवन जी सकता है ? आर्थिक विकास और उपभोक्ता सामग्री की प्रचुरता, हिंसा और अपराध में कमी नहीं ला सकते, उन्हें बढ़ाने में योगभूत बन सकते हैं। मानवता का भविष्य श्रम, अर्थ और संयम - इन तीनों के सामंजस्यपूर्ण विकास पर निर्भर हैं। श्रम और अर्थ जीवन के मौलिक पक्ष हैं। संयम जीवन का आध्यात्मिक पक्ष है । शिक्षा अथवा प्रशिक्षण यदि इन तीनों पर आधारित नहीं हैं तो जीवन की समरसता की कल्पना नहीं की जा सकती। जीवन विज्ञान के प्रयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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