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प्रस्तुति
पहले क्षण कल्पना और दूसरे क्षण उसका स्पष्ट आकार, ऐसा उसी व्यक्ति के लिए संभव है, जिसने तप तपा हो । महान् तपस्वी गुरुदेव श्री तुलसी ने एक सपना देखा - तीन सप्ताह एक प्रवचन माला चले । स्वप्न का संप्रेषण हुआ, योजना बन गई, क्रियान्विति हो गई ।
प्रवचन के आधार पर स्तंभ तीन हैं
अणुव्रत
) प्रेक्षाध्यान
जीवनविज्ञान ।
अणुव्रत अहिंसा की आचार संहिता है, सम्प्रदायातीत धर्म अथवा मानव धर्म की आचार संहिता है । हिंसा के अनेक कारण हैं, अनेक परिस्थितियां हैं और अनेक अवधारणाएं हैं । जातीय उन्माद के पीछे अहंकार के अभिनिवेश की अवधारणा है और साम्प्रदायिक अभिनिवेश के पीछे अपने मत को सर्वश्रेष्ठ मानने की अवधारणा है । इस अवधारणा ने व्यक्ति को हिंसा की भूमि पर खड़ा कर रखा है । आक्रामक हिंसा से समाज भयभीत है और अनावश्यक हिंसा से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है । मादक वस्तुओं का सेवन अपराध चेतना को मुक्त निमंत्रण है । क्या कोई भी समाज प्रामाणिकता को तिलांजलि देकर स्वस्थ रह सकता है ? निस्संदेह हिंसा बढ़ रही है, आतंक और भय बढ़ रहा है, आक्रामक मनोवृत्ति अपने पांव फैला रही है । अणुव्रत हिंसा से अहिंसा की ओर प्रस्थान करने का एक पवित्र संकल्प है। व्यक्ति और समाज को बदलने का पहला सूत्र है संकल्प । संकल्प शक्ति का विकास
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