SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८. एकला चलो रे धड़ाम से जमीन पर गिर जाते हैं। जब एक व्यक्ति खींचता है और दूसरा उसको ढीली कर देता है तो खींचने वाला गिरता है, ढील देने वाला खड़ा रह जाता है । खींचने का अर्थ ही है समस्या का उलझना । समस्या सुलझती नहीं। . जीवन जीने की कला है खिचाव और ढील का समन्वय । सह-अस्तित्व के लिए दोनों जरूरी हैं। खिचाव के साथ ढील देने की कला भी हम जानें । एक तथ्य बहुत स्पष्ट है कि जहां भेद होता है, तनाव होता है वहां विरोध की स्थिति पैदा हो जाती है। यह क्यों होता है ? निकट की रिश्तेदारी में भी यह अपवाद नहीं है। जहां भेदरेखा आयी कि चेतना बदल गई । चेतना का परिवर्तन क्यों होता है ? एक गुरु के दो शिष्य थे। दोनों विनीत और सेवाभावी थे । दोनों गुरु की सेवा-शुश्र षा करना चाहते थे। पगचंपी कराते समय गुरु ने अपने दोनों परों को दोनों शिष्यों में बांट दिया। एक शिष्य बाएं पैर की पगचंपी करता और दूसरा शिष्य दाएं पैर की पगचंपी करता है। दोनों शिष्यों की चेतना बंट गई। जब दायां पैर बायी ओर जाता तो उसकी पगचंपी करने वाला शिष्य भटका देकर उसे अपनी ओर ले जाता और जब बायां पैर दायीं ओर जाता तो दूसरा शिष्य भी वैसे ही करता। गुरु को बहुत परेशानी होती पर शिष्यों की चेतना बंट चुकी थी। गुरु को उसका परिणाम भुगतना पड़ा। भेदरेखा खिंचते ही चेतना में परिवर्तन आ जाता है। इस समस्या का समाधान मनोवैज्ञानिक ढंग से खोजना होगा जिससे कि भेद होने पर भी चेतना में विरोध न जागे। यह एक बहुत बड़ी समस्या है। इसका समाधान मनुष्य जाति को खोजना चाहिए। आज के मनोवैज्ञानिकों, चिन्तकों और विचारकों को इस समस्या के समाधान में योग देना चाहिए। यदि समाधान नहीं खोजा गया तो मनुष्य जाति इतनी बंट जाएगी कि न जाने उसका अन्त कहां होगा ? संघर्ष और लड़ाइयां इतनी बढ़ जाएंगी कि मनुष्य जाति का ही अंत दीखने लग जाएगा। एक भेदरेखा खिचती है और एक सम्प्रदाय जन्म ले लेता है। उस सम्प्रदाय से दूसरा सम्प्रदाय निकलता है और तब परस्पर टकराव और विरोध प्रारम्भ हो जाता है। कल तक जो साथ थे, कोई टकराव और विरोध नहीं था, आज अलग हाते ही टकराव होने लग जाता है। दो भाई कल तक प्रेम से साथ रहते थे। आज अलग हुए । चूल्हे ही अलग नहीं जले, मन भी अलग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy