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अनुशासन और सहिष्णुता
विकास हुए बिना अनुशासन का विकास नहीं हो सकता । इसलिए हमारा सारा प्रयत्न सहिष्णुता की शक्ति को विकसित करने के लिए होना चाहिए । तब अनुशासन स्वयं फलित होगा ।
आदमी बहुत भ्रम पालता है । वह अच्छा परिणाम चाहता है, पर कारण• सामग्री की उपेक्षा कर देता है । आदमी बीज नहीं बोता, पर फल पाना चाहता है | यह है बिना कारण के कार्य करने वाली बात । आदमी कार्य पर अधिक ध्यान केन्द्रित करता है । वह तो परिणाम है । वह अपने आप होगा । जैसा कारण होगा वैसा ही कार्य होगा । ध्यान केन्द्रित होना चाहिए कारण पर, बीज पर, साधन-सामग्री पर ।
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एक व्यक्ति बीज बो रहा था। दूसरे ने पूछा - 'भाई, क्या बो रहे हो ?' - उसने कहा-' नहीं बताऊंगा कि मैं क्या बो रहा हूं ।' तब वह बोला- 'मत बताओ । जब बीज उगेंगे, तब स्वतः पता चल जाएगा ।' उसने कहा - 'यदि यह बात है तो मैं बीज बोऊंगा ही नहीं, फिर कैसे पता चलेगा ?'
afafa बात है । आदमी अनुशासन के बीज बोता ही नहीं, और सब क्षेत्रों में अनुशासन देखना चाहता है । अनुशासन एक कार्य है । वह बिना कारण के कैसे निष्पन्न होगा ?
इस संदर्भ में एक प्रश्न हो सकता है कि सहिष्णुता का विकास कैसे हो सकता है ।
सहिष्णुता की शक्ति का विकास करने के लिए अग्र मस्तिष्क ( फन्टल • लॉब) या एमोशनल एरिया) पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा । प्रेक्षाध्यान की दृष्टि से इसे शांति केन्द्र, ज्योतिकेन्द्र का स्थान कहा जाता है । असहिष्णुता की आंच यहां है । यह चूल्हा जल रहा है। तापमान का नियंत्रण हाइपोथेलेमस द्वारा होता है । मस्तिष्क का एमोशनल एरिया ही सारी उत्ते
ओ, आवेगों और असहिष्णुता का जनक है । इसको बदले बिना या इस पर नियंत्रण किये बिना दृष्टिकोण की शक्ति का विकास नहीं हो सकता । इसको बदलने का कारगर उपाय है— ज्योतिकेन्द्र और शान्तिकेन्द्र पर ध्यान करना । यह एक बात है। दूसरी बात है कि इन केन्द्रों पर सफेद रंग का ध्यान करना । ये दो प्रयोग हैं, दो अभ्यासक्रम हैं । ये दोनों मस्तिष्क के एमोशनल एरिया पर नियंत्रण करते हैं, उसे शांत करते हैं । इस पर नियंत्रण जैसे-जैसे होता जाएगा, वैसे-वैसे उत्तेजनाएं और आवेग कम होते जाएंगे और सहिष्णुता की शक्ति का विकास होता जाएगा। जब सहिष्णुता का
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