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एकला चलो रे शिक्षा देना नहीं । आप पाठ्यक्रम के अनुसार अध्ययन करा दें, सीख देने की कोई जरूरत नहीं है।'
कहीं भी सहिष्णुता दृष्टिगोचर नहीं होती। सर्वत्र असहिष्णुता का साम्राज्य दिखाई देता है।
एक कहानी है। बया पक्षी ने बन्दर से कहा-'भाई बन्दर ! वर्षा से कांप रहे हो । तुम्हारे हाथ हैं, पैर हैं । तुम सब कुछ कर सकते हो। देखो, मैंने भी अपना घर (घोंसला) बना लिया है। तुम भी घर बनाकर आराम से रहो । वर्षा और आतप से फिर कष्ट नहीं पाओगे । मैं सुखपूर्वक रह रहा हूं। तुम मेरे से अधिक शक्तिशाली हो, आदमी जैसे हो, फिर दुःख क्यों पा रहे हो ? घर बनाकर सुख से रहो।' ___'बन्दर बोला--छोटे मुह बड़ी बात ! मुझे सीख दे रहे हो! चुप 'रहो !'
बन्दर बया के घर पर झपटा और उसे तोड़कर नीचे गिरा दिया । इसीलिए कवि ने कहा है
'हाथ तेरे पांव तेरे, मनुज सरीखी देह रे । झोंपड़ी तूं छाय बन्दर, ऊपर बरिसे मेह रे ।। सूचीमूखी दुराचारी रंडे पंडितवादिनी ।
असमर्थो गृहारम्भे, समर्थो गृहभञ्जने ॥' आज असहिष्णुता चरमसीमा तक पहुंच चुकी है। दो भाई हैं। दो मित्र हैं । तब तक भाईचारा और मित्रता निभती है जब तक आपस में कुछ कहा-सूना नहीं जाता। मन के प्रतिकूल कहते ही भाईचारा टूट जाता है, मित्रता समाप्त हो जाती। शिष्य गुरु के प्रति विनीत होता है, समर्पित होता है, विनय और समर्पण तब तक अखंड रहता है जब तक गुरु शिष्य को कुछ कठोर शब्द नहीं कहते और शिष्य का स्वार्थ संपादित होता रहता है। कुछ कहा, कुछ ताप दिया कि शिष्य मोम की तरह पिघलकर बिखर जाएगा, टूट जाएगा।
अनुशासन तब तक सम्भव नहीं है जब तक सहिष्णुता का विकास नहीं होता। हम अनुशासन लाने का बहुत प्रयत्न करते हैं । हम चाहते हैं कि अनुशासन का विकास हो, विद्यार्थी और पुलिसकर्मी में अनुशासन आए, मजदूर और कर्मचारी में अनुशासन आए । हर क्षेत्र में अनुशासन बढ़े। सब चाहते हैं किन्तु वे इस आधारभूत तत्त्व को भूल जाते हैं कि सहिष्णुता की शक्ति का
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