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________________ 50 एकला चलो रे से, उपदेश से बदलने की बात प्राप्त ही नहीं होती। आदतों को बदलने के लिए आन्तरिक चेतना को प्रभावित करना होगा और उसका एक उपाय है-ध्यान । ध्यान का अर्थ है-चेतना की गहराई में जाना और वहां जाकर चेतना का स्पर्श करना । ध्यान के माध्यम से हम भीतर जाते हैं, उस केन्द्र का स्पर्श करते हैं जहां आदतों का अस्तित्व है, जहां आदतें बनती हैं। वहां जब कोई बात पहुंचती है तब आदतों में परिवर्तन प्रारम्भ होता है। ____ ग्रन्थियों के विभिन्न स्राव होते हैं । वे हमें बहुत प्रभावित करते हैं । उन स्रावों को बदले बिना आदतों को नहीं बदला जा सकता। हम असहिष्णुता की चर्चा कर रहे थे । असहिष्णुता भी एक आदत है । यहां भी दो कोण हो सकते हैं । आदमी कह सकता है कि मैं असहिष्णु नहीं था, किन्तु परिस्थिति ने मुझे असहिष्णु बना दिया। असहिष्णु वह होता है जिसमें दूसरों की कमियों को सहने की क्षमता नहीं है। वह न कमियों को सह सकता है और न विशेषताओं को सह सकता है और न अनुकूलता को. सह सकता है और न प्रतिकूलता को सह सकता है। सामाजिक जीवन की सबसे बड़ी समस्या है कि व्यक्ति अनेक के साथ रहता है, जीवन-यापन करता है, परन्तु उनकी कमियों और विशेषताओं को सहन नहीं कर सकता। यह स्वयं के लिए बहुत बड़ा खतरा है। दूसरे के लिए भी खतरा है। वह स्वयं बेचैनी का जीवन जीता है और अकारण ही जीवन में अनेक कष्टों को आमन्त्रित कर लेता है। एक आदमी था। वह सदा प्रसन्न रहता था। एक दिन उसको उदास देखकर मित्र ने पूछा-मित्र ! तुम सदा प्रसन्न रहते थे। तुम्हारी सारी अनुकूलताएं थीं। पर आज तुम बहुत उदास दीख रहे हो, यह क्यों उसने कहा-मेरी प्रसन्नता गायब हो गई। आज से नहीं, बारह महीनों से वह गायब है । इसका भी कारण है। पहले इस गांव में मेरा मकान सबसे ऊंचा था। न जाने एक व्यक्ति कहां से आ टपका कि उसने मेरे मकान से भी ऊंचा मकान बना डाला। उसी दिन से मेरी प्रसन्नता समाप्त हो गई। इसकी कोई दवा नहीं है। आयुर्वेद विज्ञान में, मेडिकल साइन्स में, साइकोलॉजी में इसकी कोई दवा नहीं है । यह साइकोसोमेटिक बीमारी भा नहीं है । इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बना। दूसरे की विशेषता को, दूसरे की सम्पन्नता को सहन न करना ही इसका कारण है। ऐसी बीमारी का विधायक पक्ष यह है कि व्यक्ति अपनी शक्ति को बढ़ाए, तीन मंजिले मकान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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