SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकला चलो रे - विचारों की रश्मियां होती हैं, तरंगें होती हैं और वे तरंगें पूरे आकाशमंडल - में फैल जाती हैं और सम्बन्धित व्यक्ति के मस्तिष्क से टकराकर उसे प्रभावित करती हैं । मंत्री ने व्यापारी से कहा- हमें चन्दन की आवश्यकता है । तुम्हारे पास जितना चन्दन हो, वह हमारे पास भेज देना । राजकोष से उसका मूल्य मंगवा लेना । ७८ व्यापारी यह सुनकर प्रफुल्लित हो गया । उसका मन आनन्द से भर गया। उसके मन में आया कि राजा चिरायु हो। वह कृपालु है । वह हजार वर्ष जीए । राजा की मरण - कामना करने वाला व्यापारी राजा को आशीष देने लगा। उसके लम्बे जीवन की सतत कामना करने लगा । कुछ समय बीता । एक दिन राजा पुनः नगरावलोकन के लिए निकला । - उसी व्यापारी की ओर उसको दृष्टि गई। मन में सोचा - कितना भला लगता है यह आदमी । ऐसे अच्छे आदमियों से ही हमारे नगर की शोभा है, श्री है । व्यापारी की भावना के साथ-साथ राजा की भावना बदल गई । यह है - बेतार का तार । दोनों ने आपस में बातचीत नहीं की, पर अशब्द के शब्द ने - सब कुछ बता डाला । भावना का प्रभाव होता है । व्यक्ति के अच्छे विचार निर्मल आभामंडल का निर्माण करते हैं और उसके निकट आने वाले प्राणियों को प्रभावित करते हैं । परिस्थिति का प्रभाव होता है और अपने विचारों तथा वृत्तियों का भी -प्रभाव होता है, रसायनों का भी प्रभाव होता है । आदमी नहीं बदलता, इस बात में भी सचाई है और आदमी बदलता है, इसमें भी सचाई है । स्वभाव और व्यवहार नहीं बदलते, यह भी सत्य है और स्वभाव तथा व्यवहार बदलते हैं, यह भी सत्य है । दोनों सापेक्ष हैं । सापे-क्षता के आधार पर निर्णय लेना होता है । यदि हम यह मानकर बैठ जाएं कि आदमी नहीं बदल सकता तो समाज का और अधिक पतन होगा, सुधार की बात उठेगी ही नहीं । इसके विपरीत यदि हम इस सम्भावना को सदा ध्यान में रखें कि आदमी बदल सकता है तो हमारे प्रयत्न चालू रह सकेंगें - और उन प्रयत्नों का निश्चित परिणाम भी आयेगा । आवश्यकता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy