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________________ अनुशासन और सहिष्णुता हमारा यह दैनंदिन का अनुभव है कि हम किसी एक व्यक्ति के पास जाकर बैठते हैं, मन प्रफुल्लता से भर जाता है । दूसरे व्यक्ति के पास जाकर बैठते हैं, मन उदास हो जाता है, वह चिन्ता से भर जाता है । इसका कारण क्या है ? हमारे चारों ओर एक आभामण्डल है । प्रत्येक प्राणी के पास आभामण्डल है, ओरा है । जिसका आभामण्डल पवित्र विद्युत्-धाराओं से बना है, अच्छे रंगों से बना है, हरे-नीले-पीले या रक्त वर्ण से बना है, उस व्यक्ति के आसपास का वातावरण पवित्र और निर्मल बन जाता है । उस व्यक्ति के पास जाने मात्र से प्रमोद जागता है, आनन्द और उल्लास जागता है। जिस व्यक्ति का आभामण्डल खराब रंगों से निर्मित है, अन्धकार के रंगों से बना है, उसके पास जाने मात्र से घृणा की भावना जागती है, मन दुःखी और उदा बन जाता है । एक कहानी है । राजा की सवारी निकल रही थी । सर्वत्र जय-जयकार हो रहा था । सवारी बाजार के मध्य से गुजर रही थी। राजा की दृष्टि एक व्यापारी पर पड़ी । वह चन्दन का व्यापार करता था। राजा ने व्यापारी M को देखा । मन में घृणा और ग्लानि उभर आयी । उसने मन ही मन सोचा -- 'यह व्यापारी बुरा है । इसे मृत्युदंड दे देना चाहिए ।' नगर - परिभ्रमण कर राजा महलों में पहुंचा । मंत्री को बुलाकर कहा- मंत्रीवर ! न जाने क्यों उस व्यापारी को देखकर मेरा मन उद्विग्न हो गया और मन में आया कि उसको मार डाला जाए । मन्त्री ने कहा- राजन् ! मैं सारी व्यवस्था करता हूं । मंत्री उस व्यापारो के पास गया । औपचारिक बातें हुईं । व्यापारी ने कहामंत्रीवर्य ! चन्दन का भाव प्रतिदिन कम होता जा रहा है। मेरे पास चन्दन का बहुत संग्रह है । लाखों रुपयों का घाटा हो रहा है । मन आकुल व्याकुल है, चिन्ता से भरा है । राजा के सिवाय चन्दन कौन खरीदे ? राजा भी क्यों खरीदेगा ? यह प्रतिदिन काम में आने वाली वस्तु नहीं है । यह तो मरणवेला में प्रचुर मात्रा में काम आती है । मैं घाटे से दबा जा रहा हूं। सच कहूं, आज जब राजा की सवारी निकल रही थी तब राजा को देखकर मेरे मन में आया कि यदि आज राजा की मृत्यु हो जाए तो मेरा सारा चन्दन बिक जाए, अच्छे मूल्य में बिक जाए ।' " मंत्री ने सुना। राजा के उदास होने या व्यापारी को मृत्युदंड देने की भावना के जागने का रहस्य समझ गया । विचार संक्रमणशील होते हैं । वे बिना कहे दूसरे तक पहुंच जाते हैं । Jain Education International ७७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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