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अनुशासन और सहिष्णुता
७५.
यह नियम जीवन की प्रत्येक घटना के साथ लागू होता है । जीवन कीं जो भी घटनाएं, छोटी या बड़ी, घटित होती हैं, उनमें उपादान कारण भी होता है और निमित्त कारण भी होता है । परिस्थिति एक निमित्त कारण है । हम निमित्त को अस्वीकार नहीं कर सकते । मनुष्य परिस्थिति से प्रभावित होता है, किन्तु हम सारा दायित्व परिस्थिति पर ही डाल दें तो यह बचने का बहाना होता है, सचाई को नकारने की बात होती है । हम दोनों को बराबर स्थान दें । परिस्थिति आदमी को प्रभावित करती है, पर आदमी की अपनी दुर्बलता भी तो होती है साथ में । परिस्थिति के साथ आदमी की कमजोरी का पक्ष भी तो है । आदमी यह नहीं देखता, इसीलिए परिस्थिति एक वाद के रूप में सिद्धान्त बन बया । यह एकांगी पक्ष है, संतुलित पक्ष नहीं है। संतुलित पक्ष होगा परिस्थितिवाद और व्यक्ति का स्वयं का कर्तृत्ववाद | दोनों साथ जुड़े हुए हैं ।
परिस्थिति की अपनी शक्ति है । व्यक्ति की अपनी शक्ति है । व्यक्ति का कर्तृत्व इतना प्रखर होता है कि उससे परिस्थिति बदल जाती है । मनुष्य में परिस्थिति को बदलने की क्षमता है ।
आज आदमी के बदलने की बात सम्भव नहीं हो रही है, क्योंकि परिस्थितिवाद का एक चक्र उसके सामने है । आदमी का सूत्र है— जब तक परि स्थिति नहीं बदलेगी, आदमी कैसे बदलेगा ? इसी के आधार पर एक मान्यता बन गई कि आदमी का स्वभाव बदल नहीं सकता और जब आदमी बड़ा हो जाता है तब तो बदल ही नहीं सकता । राजस्थानी भाषा में इसी का वाचक एक दोहा है
'जांका पड़या स्वभाव जासी जीव स्यूं नीम न मीठा होय, सींचो गुड़-घीव स्यूं ।'
इस पद्य में कुछ सचाई है, पर वह सम्पूर्ण सत्य है ऐसा नहीं कहा जा सकता । इसको सम्पूर्ण सत्य मान लेने पर भ्रांति हो सकती है ।
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बात पर शोध और अनुसंधान
आज का युग वैज्ञानिक युग है हो रहा है । अब बदलने की बात नहीं रही है । मनुष्यों पर कम प्रयोग हो रहे हैं, पशुओं पर अनेक प्रयोग किये जा रहे हैं । बन्दरों पर, मेंढकों और चूहों पर प्रयोग हो रहे हैं । मस्तिष्क के वे केन्द्र खोज लिए गए हैं जिन्हें स्टिमुलेट, उत्तेजित करने से प्राणी के स्वभाव में परिवर्तन आ जाता
है ।
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प्रत्येक असम्भव
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