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________________ ૭૨ एकला चलो रे कर सकता है, मानो कि यह मान्यताप्राप्त स्थिति है। यहां का आदमी पशुओं के प्रति भी बहुत क्रूर व्यवहार करता है। जिस गाय से दूध लेना है, आदमी उसी को पीट देता है । ऐसा पीटता है कि गाय आगे-आगे दौड़ती है और आदमी उस पर लाटियां बरसाता हुआ पीछे-पीछे दौड़ता चला जाता है । जिस गाय से दूध लेना है, उसको पीटने से दूध कहां रहेगा ? दूध सूख जाएगा। दूध भी प्रेमपूर्ण व्यवहार के बिना नहीं मिलता। जिन लोगों ने यह समझ लिया कि गाय के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करने से वे अधिक दूध देंगी, उन्होंने पशुओं के रहन-सहन की सुन्दरतम व्यवस्थाएं की हैं। उनके रहने के लिए मकान बनाए हैं। वहां पंखे चलते हैं। कहीं-कहीं वातानुकूलित मकान हैं। रेडियो बजते हैं । संगीत की स्वर लहरियां थिरकती हैं। इस वातावरण में रहने वाली गायें अधिक दूध देती हैं। जिन गायों के प्रति क्रूर व्यवहार होता है, जिनको पीटा जाता है, गालियां दी जाती हैं, तिरस्कार किया जाता है, डराया जाता है, उनका दूध धीरे-धीरे सूख जाता है । हर प्राणी प्रेमपूर्ण व्यवहार चाहता है। वैज्ञानिकों ने वनस्पति जगत् पर प्रयोग कर यह सिद्ध कर दिया कि जिन पौधों को प्रेमपूर्ण भावना से पानी सींचा जाता है, वे पौधे अधिक विकसित होते हैं। जिन पौधों को उपेक्षावृत्ति से पानी सींचा जाता है, वे कुम्हला जाते हैं। पानी वही है, सींचने वाला भी वही है, कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं है, किन्तु भावनात्मक परिवर्तन के द्वारा एक दिशा के पौधे बढ़ गए और दूसरी दिशा के पौधे मुरझा गए । जिनको आवेश में क्रोध की स्थिति में पानी दिया गया, वे मुरझा गए और प्रेमपूर्ण भावना से सिंचन मिलने वाले पौधे बहुत बढ़ गए । कि प्रेमपूर्ण व्यवहार से हम प्राणी से काम भी लेना चाहते हैं और क्रूरता भी करते चले जाते हैं, यह प्रतिकूल आचरण है। दुनिया का नियम है दूसरे से अधिक काम लिया जा सकता है, जीवन में सफस हुआ जा सकता है, अधिक सहयोग लिया जा सकता है परन्तु अभी तक मानवीय दृष्टिकोण जितना विकसित होना चाहिए उतना विकसित नहीं हुआ है। इसमें दोषी सभी हैं । हम किसी एक को दोषी नहीं बना सकते । एक मिल मालिक अपने मजदूरों के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता है तो मजदूर भी दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करते हैं। एक बड़ा अफसर अपने अधीनस्थ छोटे अफसरों के प्रति क्रूरता का व्यवहार करता है तो वे छोटे अफसर भी अपने अधीनस्थ व्यक्तियों के प्रति वैसा ही व्यवहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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