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करुणा
७१ का दान ! यह कैसा दंड ! यदि दस चांटे मारता तो सम्भव है दस बीघा जमीन इसे मिलती और यदि और अधिक चांटे मारता तो और अधिक जमीन मिलती । आश्चर्यकारी है यह निर्णय ।
शिवाजी समझ नहीं सके कि गुरुदेव ने यह निर्णय क्यों किया? अपने को पीटने वाले के प्रति यह बर्ताव कैसे किया ? शिवाजी को रहस्य हाथ नहीं लगा । वे समझते भी कैसे ? उनका चितन दूसरे प्रकार का था। वे दंडशक्ति में विश्वास करते थे । रामदास का चिन्तन भिन्न था । वे करुणा में विश्वास करते थे।
रामदास ने रहस्य को समझाते हुए कहा-'शिवा ! तुम्हें बात समझ में नहीं आयी। कोई गूढ़ रहस्य नहीं है । देखो, यह किसान गरीब है । यदि यह गरीबी से ग्रस्त नहीं होता तो ऐसा व्यवहार कभी नहीं करता। इसने गरीबी के कारण ही ऐसा व्यवहार किया है। यदि इसकी अपराध-वृत्ति को मिटाना है तो इसकी गरीबी को मिटाना होगा। इसे पांच बीघा जमीन दे दो, फिर यह ऐसा व्यवहार कभी नहीं करेगा। ___यह है समस्या का समाधान और यह है समस्या का सम्यक् उपाय । हम मूल कारण की खोज नहीं करते और मूल कारण को खोजे बिना समस्या का कभी समाधान नहीं हो सकता। क्रूरता की समस्या का मूल है-अमानवीय दृष्टिकोण, फिर चाहे वह लोभ के रूप में अभिव्यक्त हो, संग्रहवृत्ति के रूप में विकसित हो । इसको मिटाने का एकमात्र उपाय है-मानवीय दृष्टिकोण का विकास । इसे ही प्राचीन भाषा में आत्मौपम्य दृष्टि कहा गया है। इसका अर्थ है-प्रत्येक प्राणी को अपने समान समझना । आधुनिक भाषा में यही है मानवीय दृष्टि । इसका फलित है कि प्रत्येक व्यक्ति में यह चेतना जागे कि 'सब मेरे जैसे ही मनुष्य हैं । हम सब एक हैं । मैं भी मनुष्य हूं। वह भी मनुष्य है । मुझे मनुष्य को मनुष्य की दृष्टि से देखना चाहिए।'
इस दृष्टि का विकास बहुत जरूरी है। आज सामाजिक जीवन में । जब तक इस दृष्टि का विकास नहीं होगा तब तक क्रूरता समाप्त नहीं होगी, व्यवहार नहीं बदलेगा । आदमी दूसरे आदमी के प्रति बहुत क्रूर व्यवहार कर लेता है। मिलमालिक मजदूर के प्रति, सेठ कर्मचारी के प्रति, अफसर अपने अधिनस्थ व्यक्तियों के प्रति क्रूर व्यवहार करता है । सर्वत्र क्रूर व्यवहार देखा जाता है । इसका कारण है—बड़प्पन और छुटपन का मनोभाव । यह मान लिया गया है कि एक बड़ा है, एक छोटा है । बड़ा छोटे के प्रति क्रूर व्यवहार
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