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________________ ६८ बुला भेजा । यह अन्तहीन शृङ्खला है । इससे समस्या का अन्त नहीं होता । समस्या का मूल हमें खोजना होगा। यदि हम चाहें कि दंडशक्ति के प्रयोग के द्वारा समाज की समस्या का अन्त हो जाए तो यह अतिकल्पना ही होगी । हमें दूसरी दृष्टि से सोचना होगा । केवल क्रूरता के द्वारा अपराध को नहीं मिटाया जा सकता । केवल दंड के द्वारा अपराधी का निग्रह नहीं किया जा सकता । हमें मूल को खोजना होगा । क्रूरता का मूल क्या है, इसे जानना होगा । एकला चलो रे क्रूरता का मूल है— लोभ और अमानवीय दृष्टिकोण । एक व्यक्ति खानेपीने के पदार्थों में मिलावट करता है । क्यों करता है, यह एक प्रश्न है । इसका सहज उत्तर है कि वह व्यक्ति लोभ से ग्रस्त है, और कोई दूसरा कारण नहीं है । वह किसी को मारना नहीं चाहता, किसी को सताना नहीं चाहता, परन्तु लोभवश वह अमानवीय आचरण कर लेता है । एक व्यापारी ने पशुओं के चारे में मिलावट की। हजारों पशु मारे गये वह पशुओं को मारना नहीं चाहता था, पर लोभवश उसने मिलावट की और हजारों पशु मर गए । यह कल्पना नहीं, घटित घटना है । । एक बार हम दिल्ली से प्रस्थान कर नांगलोई गांव में ठहरे। वहां इन्स्पेक्टर हमसे परिचित थे । वे सायंकाल आए। हमने कहा- बहुत विलंब से आए । उन्होंने कहा— महाराज ! कुछ दिनों से पशुओं के मरने की शिकायतें आ रही थीं । मृत्यु का कारण ज्ञात नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे एक सुराख मिला । हमने एक व्यापारी को पकड़ा। उसके पास संगृहीत चारे का परीक्षण किया । हमें ज्ञात हो गया कि उस चारे के कारण ही पशुओं की मृत्यु हो रही है । उस व्यापारी ने थोड़े से लाभ के लिए उस चारे में कोई ऐसी नकली चीज मिला दी थी जो जहरीली थी। आज उसी सिलसिले में व्यस्त रहना पड़ा । महाराज ! धार्मिक कहलाने वाले ये उपासक, एक ओर धर्म का ढिंढोरा पीटते हैं और दूसरी ओर निर्दयता का नग्न प्रदर्शन करते हैं । कितना विरोधाभास है इनके जीवन में ! · मिलावट करना जघन्यतम अपराध है, अमानवीय दृष्टिकोण है। लोभ इसका मूल कारण है, अन्यथा व्यक्ति इतने नीचे स्तर पर नहीं आ सकता । क्या कोई आदमी ऐसा सोच भी सकता है कि उसके तुच्छ स्वार्थ के लिए हजारों मनुष्य, हजारों पशु मर जाएं ? किन्तु जब आदमी लोभ से पराभूत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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