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________________ करुणा होता है और रक्षा करने वाला भी भक्षक बन जाता है, अपराधी बन जाता है । शक्ति का योग जब क्रूरता के साथ जुड़ता है तब वह शक्ति पर-पीड़न में लग जाती है । सुधारना, निग्रह करना यह भिन्न प्रकार है और क्रूरता करना—यह भिन्न प्रकार है । समाज-व्यवस्था के लिए अनुग्रह और निग्रहदोनों परम आवश्यक तत्त्व हैं। दुष्ट को दंड देना और सज्जन की पूजा करना, दुष्ट का निग्रह और सज्जन पर अनुग्रह—यह है समाज-व्यवस्था का सूत्र । यदि ये दो शक्तियां नहीं होती हैं तो समाज की व्यवस्था नहीं चल सकती। दोनों बराबर हैं, किन्तु दंड में और निग्रह में कितना विवेक अपेक्षित होता है, इसको जानना बहुत आवश्यक है । विवेक के बिना अनर्थ घटित हो जाता है। उस जमाने में पोपाबाई का राजा था। एक दिन ऐसा हुआ कि एक आदमी गली से गुजर रहा था। अचानक किसी के घर की भींत गिरी और वह आदमी मर गया । पोपा बाई के सामने शिकायत गई। पोपा बाई ने मकान मालिक को बुला भेजा। घर का स्वामी आया। पोपा बाई ने कहा-तुम्हारी भींत गिरने के कारण आदमी की मौत हो गई। इसके दंडस्वरूप तुम्हें फांसी दी जाएगी। सारी सभा में सन्नाटा छा गया। स्वामी ने सोचा, कोई भय की बात नहीं है । आखिर राज्य तो पोपा बाई का है। उसने हाथ जोड़कर कहा-महाराज ! आपका निर्णय शिरोधार्य है। पर दोष मेरा नहीं है । मैं निर्दोष हूं। मकान बनाने वाले चेजारे ने इतनी कमजोर दीवार बनाई ही क्यों ? दोष उसका है। पोपा बाई ने चेजारे को बुलाकर कहा--तुम्हें फांसी पर चढ़ना होगा। तुमने इतनी कमजोर भींत क्यों बनाई ? उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा—'महाराज ! दोष मेरा नहीं है जब मैं दीवार खड़ी कर रहा था तब एक बारात उधर से गुजर रही थी। उसके साथ बाजे बज रहे थे । मेरा ध्यान बाजों की ओर चला गया। ध्यान नहीं रहा। गारे में पानी अधिक गिर गया। दीवार कच्ची रह गई। मैं दोषी नहीं हूं। दोषी है बाजे बजाने वाला । पोपा बाई बोली-तुम ठीक कहते हो । बाजे बजाने वाले को बुलाकर कहा—आदमी मरा, इसके जिम्मेवार तुम हो । तुमको फांसी दी जाएगी। तुम बाजों को इतना मीठा क्यों बजाते हो कि जिससे दूसरे का ध्यान उस ओर जाए और अन्याय घटित हो जाए ? उसने कहा-महाराज ! मेरा इसमें दोष क्या है ? सारा दोष बाजे बनाने वाले का है कि वह इतना अच्छा बाजा क्यों बनाता है ? पोपा बाई ने उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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