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करुणा
कल ही एक भाई ने पूछा था - नैतिकता का आधार क्या है ? मैंने जो उत्तर दिया था वह संक्षेप में था । आज मैं उसकी विस्तार से चर्चा करना चाहता हूं । नैतिकता का आधार है – करुणा । हमारी दो वृत्तियां हैं - एक है क्रूरता की वृत्ति और दूसरी है करुणा की वृत्ति । करुणा का सम्बन्ध है संवेदनशीलता से । मनुष्य जितना संवेदनशील होता है, उतनी करुणा उसमें जागती जाती है । मनुष्य जितना संवेदनहीन होता है, उतनी ही क्रूरता बढ़ती जाती है ।
मेरे सामने एक प्रश्न आया कि क्या ध्यान के अभ्यास के द्वारा पुलिसकर्मियों को पराक्रमहीन एवं शौर्यहीन बनाना चाहते हैं ? मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ । मैं पूछना चाहता हूं, क्या शौर्य और क्रूरता एक ही हैं ? नहीं, दोनों
बहुत बड़ा अन्तर है । शौर्य भिन्न वस्तु है और क्रूरता भिन्न वस्तु है | रात और दिन में जितना अन्तर है उससे भी अधिक अन्तर है क्रूरता और शौर्य में । शौर्य पराक्रम है । उसे न्यून करने की बात ही नहीं होती । पराक्रम को बढ़ाया जा सकता है । उसका विकास किया जा सकता है । उसका विकास वांछनीय है | क्रूरता अमानवीय दृष्टिकोण है, राक्षसी कार्य है। उसे कम करना जरूरी है ।
एक संस्कृत कवि ने कहा है
'विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां परपीडनाय । खलस्य साधोः विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।। विद्या विवाद के लिए, धन अहंतुष्टि के लिए और शक्ति दूसरों को पीड़ित करने के लिए - ये तीन बातें हैं । दुष्ट व्यक्ति के लिए ये तीनों प्राप्त हैं और सज्जन व्यक्ति के लिए ये तीनों विपरीत रूप में होती हैं । उसके लिए विद्या विवाद के लिए नहीं, ज्ञान के लिए होती है, धन अहंकार का कारण न बनकर दान का कारण बनता है और शक्ति का उपयोग दूसरों को पीड़ित करने के लिए नहीं, किन्तु दूसरों की रक्षा के लिए होता है । वह क्रूर नहीं होता । उसमें करुणा का अजस्र स्रोत बहता रहता है ।
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