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________________ प्रामाणिकता ५६ बड़ी कठिनाइयां पैदा होती हैं समाज में । एक व्यक्ति ने बताया-मेरा पड़ोसी मेरे साथ विचित्र व्यवहार करता है। अपने घर से सारा कूड़ा-करकट निकालता है और उसे मेरे मकान के सामने डाल देता है । मैंने उसे बहुत समझाया, बहुत समझाया-भाई, ऐसा मत करो। काफी समझाने पर भी नहीं माना तो सोचा, अब क्या किया जाना चाहिए। बड़ी समस्या है, तो फिर मेरे नौकर ने भी ऐसा ही शुरू किया। सारा कूड़ा-करकट वह निकालता और उसे साथ मिलाकर दोनों को उसके घर के आगे डाल आता। व्यवहार का यह जो एक संघर्ष होता है, व्यवहार की यह जो अप्रामाणिकता होती है, वह व्यक्ति को बड़े संकट में डाल देती है। व्यवहार की एक कहानी है। जंगल में आदमी जा रहा था । योग ऐसा ऐसा मिला, बन्दर बैठा था पेड़ के नीचे। आदमी पेड़ के पास पहुंचा । पीछे से चीता भागता हुआ आ रहा था। आदमी ने भी देखा। बन्दर ने भी देखा। बन्दर भी पेड़ पर चढ़ गया, आदमी भी चढ़ गया । जीवन के कुछ क्षण ऐसे होते हैं जहां परस्पर मैत्री जुड़ जाती है। संकट का समय मैत्री जोड़ने का होता है । आदमी सुख के समय में परस्पर में विरोध भी रख लेता है पर संकट की घड़ी में तो एकमत हो जाता है और मैत्री भी जुड़ जाती है। ऐसा होता है। पति-पत्नी में बहुत झगड़ा चलता था। एक बार पड़ोसी ने पूछा कि तुम्हारा मत कभी मिलता ही नहीं है। लड़ते-झगड़ते रहते हो, क्या जीवन है ? कभी एकमत भी हुए हो? पति बोला-एक क्षण ऐसा आया था, जब हम एकमत हुए हैं । क्या ? घर में आग लग गई थी। एक ही दरवाजा था। एक ही दरवाजे से दोनों एक साथ निकेले । उस समय हम दोनों एकमत थे। ___ संकट की घड़ी में मैत्री जुड़ जाती है और सम्बन्ध भी जुड़ जाता है । बन्दर में और आदमी में मैत्री हो गई, दोनों पेड़ पर चढ़ गये । चीता नीचे बैठा था । आदमी ऊपर और बन्दर भी ऊपर । दोनों ऊपर बैठे हैं। काफी समय हो गया। चीते ने सोचा, अब तो पराक्रम से काम नहीं चलेगा। जहां पराक्रम से काम न चले, वहां बुद्धिबल से काम लेना चाहिए । और बुद्धिबल में भी भेदनीति से काम चलेगा। रात हो गई। सोने का समय था। दोनों ने आदमी और बन्दर ने, एक उपाय निकाला। बन्दर ने कहा-कुछ समय तक तुम सो जाओ, मैं जागता रहूंगा। फिर मैं सो जाऊंगा, तुम जागते रहना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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