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________________ ५८ एकला चलो रे. उसे बुरा लगता ही नहीं । किन्तु जब वह आटा लेने जाता है, मसाला लेने जाता है और मिलावटी आटा और मिलावटी मसाले मिलते हैं तब सिर ठनकता है । बोलता है— समाज कितना खराब हो गया है। अरे भाई ! जब तुम स्वयं कर रहे हो, समाज का एक हिस्सा बुराई करेगा, दूसरा नही करेगा, यह कल्पना ही नहीं की जा सकती । सुधरता है तो पूरा समाज सुधता है, बिगड़ता है तो पूरा समाज बिगड़ता है । हमारे सामने प्रश्न आया कि आप शिविर कर रहे हैं, किन्तु पुलिस के लोग तो इतने भ्रष्ट हैं, कैसे सुधरेंगे? मैंने कहा कि क्या पुलिस का आदमी कोई आकाश से टपकता है ? आकाश से तो नहीं आता । उस समाज से आता है जिस समाज में आप लोग जी रहे हैं । कोई पुलिस का आदमी, ' , कोई राज्य - कर्मचारी, कोई अध्यापक, कोई व्यापारी अकेला अच्छा भी नहीं हो सकता, बुरा भी नहीं हो सकता । यदि बुरा है तो पूरा समाज है और अच्छा है तो पूरा समाज होगा । हम यह काटकर कल्पना करें कि पुलिस के आदमी तो सब अच्छे हो जाएंगे, नैतिक हो जाएंगे और पूरा समाज अनैतिक ही रह जाएगा । यह मात्र कल्पना होगी । हम यह कल्पना करें कि राज्य - कर्मचारी तो सब अच्छे हो जाएंगे, व्यापारी ऐसे ही रहेंगे, यह कल्पना भी हमारी अतिकल्पना होगी। हम यह सोचें, निश्चित मानकर चलें कि सुधरेगा तो पूरा समाज सुधरेगा, बिगड़ेगा तो पूरा समाज बिगड़ेगा । हम एक-एक अंग को काटकर अलग कल्पना नहीं कर सकते । हमारे तन्त्र की ऐसी व्यवस्था है, ऐसी अवयव और अवयवी की संघटना है कि जिसमें से एक अवयव को अलग काटकर स्वस्थ नहीं बनाया जा सकता । यह आर्थिक प्रामाणिकता का प्रश्न पूरे समाज के लिए महत्त्वपूर्ण प्रश्न है, जो आज चिन्ता का विषय बना हुआ है और जिसके आधार पर समूचे समाज का भविष्य अधर में लटका हुआ है । प्रामाणिकता का तीसरा विषय है— व्यवहार की प्रामाणिकता । एक प्रकार का व्यवहार विश्वास पैदा करता है और दूसरे प्रकार का व्यवहार अविश्वास पैदा करता है । समाज में बहुत अपेक्षा होती है कि अच्छा व्यव-हार मिले | सब लोग अपेक्षा रखते हैं कि माता-पिता से यह व्यवहार मिले । पुत्र से पिता अपेक्षा रखता है कि यह व्यवहार मिले । पड़ोसी पड़ोसी से व्यवहार की अपेक्षा रखता है। जहां व्यवहार की प्रामाणिकता होती है, समाज स्वस्थ रहता है और जहां व्यवहार में अप्रामाणिकता आ जाती है.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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