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प्रामाणिकता नयी घटना है आचार्य नरेन्द्रदेव की। बहुत बड़े विद्वान् और बहुत बड़े राजनीतिज्ञ हुए हैं-आचार्यनरेन्द्रदेव । वाइस चांसलर थे। तांगे में जा रहे थे । लोगों ने पूछा-यह कैसे, महाराज ! आपके पास तो कार है, फिर तांगे में कैसे ? उन्होंने कहा-मैं अपने काम से जा रहा हूं। कार विश्वविद्यालय की है । मैं अभी विश्वविद्यालय के काम से नहीं जा रहा हूं, मैं अपने काम से जा रहा हूं। यह है आर्थिक प्रामाणिकता।
जोधपुर राज्य का दीवान था। दो दीये जलाया करता था अपने घर में । कोई देखने नहीं आता था, फिर भी वे अपने घर में दो दीये जलाते थे । जब राज का काम करता तो राजकी दीया जलता और जब अपने घर का काम करता तो उस दीये को बुझा देता, अपना दूसरा दीया जला लेता। यह है आर्थिक प्रामाणिकता। ___ अर्थ के विषय में आदमी इतना प्रामाणिक होता है कि दूसरे के हक का लेना नहीं चाहता। आज एक भ्रान्ति पैदा हो गई कि गरीब आदमी प्रामाणिक कैसे रह सकता है ? इस भ्रम को तोड़ना होगा। यदि गरीब आदमी प्रामाणिक नहीं हो सकता तो उसकी गरीबी बड़ा आदमी मिटायेगा भी नहीं। बड़ा आदमी इसलिए तो अप्रामाणिक बना हुआ है कि गरीब आदमी के मन से यह धारणा नहीं निकल रही है । आज गरीब आदमी के मन से यह धारणा निकल जाये कि अच्छा समाज, अच्छा व्यक्ति वह होता है जो प्रामाणिक जीवन जीता है तो कुछ बड़े लोग अप्रामाणिकता से अपना काम नहीं चला सकते । अप्रामाणिकता को सहारा मिला हुआ है गरीब लोगों की अवधारणा का । अगर यह अवधारणा टूट जाये तो वे कब तक अकेले चल सकेंगे कुछेक लोग ? किन्तु आज विश्वास हो गया है कि बिना बुराई के, अप्रामाणिकता के समाज का, व्यक्ति का काम चल ही नहीं सकता । जब यह व्यापक अवधारणा बन गई तो फिर किसी को अच्छा बनने की कोई आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती। मुझे लगता है, अर्थ के मामले में, आर्थिक समस्याओं के विषय में आज यदि दृष्टिकोण बदले तो उनका अधिक सुलझाव हमारे सामने हो सकता है । ये उलझी हुई हैं हमारी ही मान्यताओं और गलत धारणाओं के कारण । एक चक्रव्यूह है । कोई ऐसा अभिमन्यु नहीं दीखता जो उसमें प्रवेश पा सके और ऐसा नहीं दीखता कि वापस निकल सके। हर व्यक्ति बुराई की भाषा में जब सोचने लग जाये तो वह चक्रव्यूह और मजबूत बन जाता है। दूध में पानी मिलाने वाला सोचता है-इसमें क्या बुराई है ? कोई कठिन नहीं है।
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