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एकला चलो रे
सम्बन्धों में सबसे बड़ा कोई तत्त्व है तो वह है वाणी । आज आप ऐसे समाज की कल्पना करें जहां सब वाणीविहीन हैं। आप कल्पना करें, -समाज कैसे चलेगा, कब तक चलेगा? समाज ही समाप्त हो जायेगा । पशुओं का समाज नहीं बना। गायों का, भैंसों का समाज नहीं बना। इसलिए नहीं बना कि उनकी वाणी नहीं है । व्यक्त भाषा नहीं है । व्यक्त भाषा के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । भाषा ने समाज को जन्म दिया है और उस वाणी की प्रतिष्ठा ही जब हम खो बैठते हैं तो हमारी प्रामाणिकता और नैतिकता की सारी बात समाप्त हो जाती है । हिन्दुस्तान ने हिन्दुस्तान की आध्यात्मिक संस्कृति ने यहां की सभ्यता ने इस बात का अनुभव किया था कि जीवन में सबसे ज्यादा मूल्य हो सकता है तो वह वाणी का हो सकता है । मन का बहुत मूल्य है, किन्तु अपने लिए। आपके मन की बात अपप जानें। दूसरे को क्या मतलब ! आप किसी भी व्यक्ति के बारे में बुरा सोचें, किसी भी व्यक्ति के बारे में अच्छा सोचें, दूसरे को पता नहीं चलता । मन हमारी वैयक्तिक बात है ।
शरीर भी कुछ अर्थों में वैयक्तिक है, किन्तु सामाजिक सूत्रों को जोड़ने वाली है हमारी वाणी । वाणी के बिना एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से जुड़ नहीं सकता । इसके द्वारा ही एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से जुड़ता है और टूटता है । वाणी के द्वारा सम्बन्ध स्थापित होते हैं और वाणी के द्वारा विसम्बन्ध भी होता है । तो यह मूल सूत्र है-वाणी । हमने वाणी की प्रतिष्ठा की । वाणी को सरस्वतीदेवी का स्थान दिया । सरस्वती की उपासना की, आराधना की । आज सबसे ज्यादा फिर अप्रतिष्ठा दी है तो वाणी को दी है। वाणी का मूल्य इतना खो चुका है आदमी कि ऐसा लगता ही नहीं कि इसका भी कोई मूल्य है । दो घंटा पहले एक बात कही और दो घंटा बाद उसको बदल दिया तो क्या फर्क पड़ा । वह भी मौखिक बात थी, यह भी मौखिक बात है। मूंछ ऊंची रहे तो क्या, मूंछ नीची आ गई तो क्या फर्क पड़ा। कुछ भी फर्क पड़ने वाला नहीं है । वाचिक प्रामाणिकता प्रधान सूत्र है नैतिकता का ।
प्रामाणिकता का दूसरा विषय है-आर्थिक प्रामाणिकता । अर्थ के संबंध प्रामाणिकता का विकास हुआ था । बहुत जबरदस्त विकास हुआ था । परिभाषा की गई कि पवित्र कौन होता है ? अर्थशुचिः शुचिः । जो आर्थिक मामले में पवित्र होता है वास्तव में वही व्यक्ति पवित्र होता है । आर्थिक पवित्रता की पुरानी घटनाएं भी हैं। नयी घटना भी आज हमारे सामने है ।
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