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एकला चलो रे
वहां सामने कोई दूसरा चाहिए, सम्बन्ध चाहिए, सम्पर्क चाहिए । नैतिकता हमारा व्यवहार का विज्ञान है और अध्यात्म हमारे अन्तःकरण का विज्ञान
____जहां सामाजिक सम्पर्क है, आदमी जहां समाज में जीता है, वहां उसे नैतिक होना जरूरी होता है । कोई व्यक्ति आध्यात्मिक हो या न हो, किन्तु नैतिक होना समाज की अपेक्षा है। यह सही बात है कि जो आध्यात्मिक होगा वह नैतिक होगा ही। किन्तु जो नैतिक होता है, उसका आध्यात्मिक होना जरूरी नहीं है । नैतिकता के लिए समाज का प्रेम, राष्ट्र का प्रेम भी आधार बनता है । किन्तु अध्यात्म के लिए व्यक्ति का अन्तःकरण ही प्रमाण होता है। __ नैतिकता का एक अर्थ है-प्रामाणिकता और दूसरा अर्थ है-सामंजस्य । नैतिकता की व्याख्या करना बहुत जटिल काम है। भारतीय आचारशास्त्रियों ने और पश्चिम के आचारशास्त्रियों ने, व्यवहारशास्त्रियों ने नैतिकता की व्याख्या में बहुत श्रम लगाया है और अधिकांश श्रम पश्चिम के आचारशास्त्रियों ने लगाया है। भारत में नैतिकता जैसी परिकल्पना स्पष्ट नहीं थी। हमारे यहां प्रामाणिकता की बात बहुत स्पष्ट थी और प्रामाणिकता की बात होती है वहां नैतिकता की अलग से चर्चा करना आवश्यक नहीं होता। किन्तु जब आज पश्चिम के आचारशास्त्र के सन्दर्भ में हम विचार करते हैं तब नैतिक शब्द का प्रयोग भी हमारे लिए जरूरी हो जाता है । तुलनात्मक दृष्टि से हम नैतिकता और प्रामाणिकता की चर्चा और समीक्षा करें। ___ नैतिकता का एक अर्थ है-प्रामाणिकता । प्रामाणिकता तीन प्रकार की होती है-वचन की प्रामाणिकता. अर्थ की प्रामाणिकता और व्यवहार की प्रामाणिकता । वचन की प्रामाणिकता भारतीय संस्कृति का एक बहुत उज्ज्वल पक्ष रहा है । जो बात मुह से कह दी वह लोहे की लकीर बन गई। लिखने की जरूरत नहीं, किसी की साक्षी की जरूरत नहीं। बस मुंह से जो वचन कह दिया, प्राण चला जाये पर वचन को नहीं तोड़ना । हमारा इतिहास इस वचन की प्रामाणिकता से भरा पड़ा है । गुजरात के एक श्रेष्ठी की घटना का उल्लेख करना चाहता हूं । एक व्यापारी और बहुत प्रसिद्ध व्यापारी । नाम था भैंसाशाह । घटना गुजरात की है । रहने वाले थे राजस्थान के । गुजरात में गये थे। आवश्यकता हो गई व्यापार में एक लाख मुद्रा चाहिए। कहां से मिले ? अपरिचित थे, नया क्षेत्र और चाहिए
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