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प्रामाणिकता
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सामाजिक स्वास्थ्य की चर्चा करनी | यदि सामाजिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तो वैयक्तिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं रह सकता । वैयक्तिक चारित्र और सामाजिक चारित्र - दोनों सापेक्ष हैं। मैं स्वास्थ्य और चरित्र को दो दृष्टियों से नहीं देखता । जो हमारा चरित्र है वही हमारा वास्तव में स्वास्थय है जो हमारा स्वास्थ्य है वही हमारा वास्तव में चरित्र है । क्या अस्वस्थ व्यक्ति चरित्रवान हो सकता है ? क्या अस्वस्थ व्यक्ति के चरित्रवान होने की सम्भावना की जा सकती है ? बीमारी है तो स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाएगा, चरित्र भी बदल जाएगा, मस्तिष्क असन्तुलित हो जाएगा । सन्तुलित दिमाग उसी व्यक्ति का हो सकता है जो स्वस्थ होता है । शरीर से स्वस्थ, मन से स्वस्थ तो फिर सामाजिक संदर्भ में स्वस्थ |
'स्वस्थ' शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण शब्द है । संस्कृत व्याकरण के अनुसार इसके दो अर्थ होते हैं । दो व्युत्पत्तियां इसकी होती हैं - एक सु-अस्थि । जिसकी हड्डियां अच्छी होती हैं, मजबूत होती हैं, वह स्वस्थ होता है । दूसरा अर्थ है - स्वस्मिन् तिष्ठतीति स्वस्थः- जो अपने आप में स्थित होता है, वह स्वस्थ है । अपने आप में वही स्थित होता है जिसका मन सन्तुलित और सम्यक् होता है । स्वस्थ शब्द दो अर्थ की व्यंजना देता है— शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक सन्तुलन । हड्डियों का हमारे स्वास्थ्य के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है । अस्थि जितने अच्छे होते हैं और अस्थि के साथ जुड़ी हुई मज्जाएं जितनी अच्छी होती हैं उतना ही स्वास्थ्य अच्छा होता है और जिसकी मज्जा अच्छी होती है, उसका मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा होता है । शरीर और मन का सम्वन्ध है, स्वास्थ्य और स्वस्थ का परस्पर सम्बन्ध है । जो व्यक्ति स्वस्थ होता है वह सामाजिक सम्बन्धों में, सामाजिक सम्पर्कों में स्वस्थ होता है । तो इस दृष्टि से चरित्र और स्वास्थ्य दोनों जुड़े हुए हैं।
जहां धर्म की मीमांसा हुई, अध्यात्म की समीक्षा हुई, वहां दो शब्दों का विकास हुआ —- अध्यात्म और नैतिकता | अध्यात्म है व्यक्तिगत सम्पर्क और नैतिकता है सामाजिक सम्पर्क | अध्यात्म अकेलेपन की सूचना करता है और नैतिकता द्वैत की, दो के सम्बन्धों की सूचना करती है ।
एक व्यक्ति अपने आप में अच्छा हो सकता है । एक व्यक्ति अपने आप में निर्मल चित्त वाला हो सकता है, अध्यात्म हो सकता है, किन्तु एक व्यक्ति अपने आप में नैतिक नहीं हो सकना । जहां नैतिकता की कोई बात होगी
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