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________________ प्रामाणिकता हम दो आयामों में जीते हैं - एक व्यक्ति और एक समाज । प्रत्येक sofक्त व्यक्ति है और प्रत्येक व्यक्ति समाज है । समाज से कटा हुआ व्यक्ति - अच्छा जीवन नहीं जी सकता और व्यक्ति के बिना समाज की कल्पना नहीं सकती। एक सीमा है व्यक्तित्व की और वह सीमा शरीर के द्वारा निर्मित है। एक ऐसा घेरा जो वैयक्तिक होता है । इन्द्रियां, मन और बुद्धि-ये अपने व्यक्तित्व को बनाये हुए हैं । संवेदन व्यक्ति को बनाये हुए है । सुख-दुःख का संवेदन वैयक्तिक होता है । वह प्रसरणशील बाद में होता है, किन्तु प्रत्येक संवेदन अपने काल में वैयक्तिक होता है । ये सारी हमारी व्यक्तित्व की सीमाएं हैं और इन सीमाओं में हम व्यक्ति बने हुए हैं । प्राणी में कुछ मौलिक मनोवृत्तियां होती हैं | संज्ञाएं होती हैं । एक काम की वृत्ति है, संघर्ष की वृत्ति, सहयोग की वृत्ति । काम की वृत्ति प्राणी को सामाजिक बनाती है । - मनुष्य सामाजिक बना है— काम एषणा के द्वारा । काम एषणा में एक से दो की अपेक्षा होती है और वह सामाजिकता का पहला बिन्दु बनता है । संघर्ष की वृत्ति भी है। संघर्ष भी अकेले में नहीं होता, दो में होता है । वह द्वन्द्व होता है । सहयोग भी दो में होता है । ये कुछ एषणाएं और कुछ वृत्तियां व्यक्ति को सामाजिक बनाती हैं । व्यक्ति को कभी भी सामाजिकता की सीमा से सर्वथा अतीत नहीं कर सकते । मछली पानी में रहती है और पानी में जीती है । पानी से मछली को अलग करने का अर्थ होता है— मृत्यु | सबसे बड़ा कारण जो व्यक्ति और समाज के बीच सम्बन्ध का है, वह है संक्रामकता । प्रभावों की संक्रामकता । व्यक्ति प्रभावित होता है, संक्रान्त होता है । हमारे जीवन में संक्रमण और प्रभाव के बहुत तत्त्व हैं । हम बाहर से बहुत प्रभावित होते हैं । कोई व्यक्ति यह सोचे कि मैं समाज से सम्बन्ध नहीं रखूंगा, अकेला गुफा में चला जाऊंगा और किसी से सम्पर्क नहीं रखूंगा, नितान्त अकेला बन जाऊंगा । पर वह नितान्त अकेलेपन की बात हिमालय में भी सम्भव नहीं है । विश्व के किसी भी कोने में सम्भव नहीं है । सौरमण्डल का प्रभाव वहां भी आता है । हमारे विचारों का प्रभाव वहां भी जाता है। हम जो सोचते हैं । हमारा विचार केवल इस हॉल के भीतर ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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