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________________ एकला चलो रे इनके साथ । ऐसे शुद्ध साधन हैं कि नितान्त वैयक्तिक साधन । आपके पुलिसकर्मियों में से एक व्यक्ति दीर्घ श्वास लेता है और एक छोटा श्वास लेता है तो क्या जिसने दीर्घ श्वास लिया, दूसरे पास बैठे व्यक्ति को मिल जाएगा? नहीं मिलेगा। बाप लम्बा श्वास लेता है, भावना का प्रयोग करता है, चेतना को बदलता है तो क्या बेटे की भी चेतना बदल जायेगी ? बाप.बेटे की भी नहीं बदलती। यह तो नितान्त वैयक्तिक प्रयोग है। जो व्यक्ति करता है, उसको लाभ मिल जाता है, नहीं करता है उसे नहीं मिलता। मैं तो दबाव नहीं देता कि कोई करे या न करे। करने वाले की इच्छा है, अपनी इच्छा है, हम क्यों थोपें ? क्यों दबाव दें कि करना ही होगा। अपनी इच्छा है । जिसको लाभ उठाना है करे, जिसे लगता है कि मुझे कोई लाभ नहीं उठाना है, नहीं बदलना है, न करे। किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। आध्यात्मिक प्रयोग में परतंत्रता नहीं होती, दबाव नहीं होता और बाध्यता नहीं होती कि तुम्हें यह करना ही पड़ेगा। एक यूनिफॉर्म आपके है तो आपको दबाव होता है कि जब आप परेड के लिए जाएंगे तो उसी यूनिफॉर्म के साथ जाएंगे। वहां तो व्यवस्था का प्रश्न है, किन्तु जहां चेतना को भीतर से बदलने का प्रश्न है वहां हजार बार दबाव डाल दें पर भीतर की चेतना नहीं बदल सकती। वह तभी बदल सकती है, जब आप चाहें कि बदलना है । अन्यथा कभी भी नहीं बदल सकती। यह बिलकुल शुद्ध आध्यात्मिक प्रयोग, असाम्प्रदायिक प्रयोग, नितान्त वैयक्तिक प्रयोग और आपकी स्वतंत्र चेतना पर निर्भर प्रयोग है । आप चाहें तभी कर सकते हैं, न चाहें तो बिलकुल नहीं हो सकता। भावना का प्रयोग और संकल्प-शक्ति के विकास का प्रयोग–ये दो हमारी चेतना के रूपान्तरण के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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