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एकला चलो रे
जो ज्ञान-तन्तु सक्रिय होते हैं, अपना काम करना चाहते हैं, वे निराश हो जाते हैं । आप दस बार ऐसा करें तो ग्यारहवीं बार वे भी कहेंगे कि अब तुम भी देखो, क्या होता है, मजा देखो हमारा । स्वाभाविक है, प्रतिरोध की भावना होती । वे भी अपना काम करना, अपना संदेश देना बंद करने लग जाते हैं और धीरु-धीरे कोष्ठबद्धता बनने लग जाती है । नियमितता का बहुत बड़ा महत्त्व होता है संकल्प-शक्ति के विकास में ।
संकल्प शक्ति के विकास के लिए तीन बातें बहुत आवश्यक हैं-इन्द्रियविजय, कष्ट - सहिष्णुता और मन की एकाग्रता । जिस व्यक्ति में ये तीन बातें नहीं होतीं उसकी संकल्प शक्ति टूट जाती है । एक आदमी संकल्प करता है कि मैं ऐसा नहीं करूंगा, नहीं करूंगा । पर इन्द्रियों पर काबू नहीं । कोई चीज सामने आयी और तत्काल संकल्प टूट जाता है। बीमार आदमी सोचता है कि इस चीज से मुझे बड़ा कष्ट हुआ. कल यह मैं नहीं पीऊंगा, नहीं खाऊंगा । किन्तु सामने आया तो कल की बात कल ही रह गई, आज की बात नहीं बनी। क्योंकि इन्द्रियों पर संयम नहीं है । संकल्प शक्ति के विकास के लिए प्रथम शर्त है -- इन्द्रियों का संयम |
दूसरी बात है -- कष्ट सहिष्णुता । थोड़ा-सा कष्ट आया और संकल्प टूट गया । कष्ट-सहिष्णुता जिसमें नहीं होती, उसकी संकल्प शक्ति मजबूत नहीं
होती ।
तीसरी बात है- मन की चपलता । संकल्प किया पर मन इतना चपल होता है कि मन में तरंग उठी और बात समाप्त ।
ये तीन बातें होती हैं तो संकल्प - शक्ति का विकास हो सकता है और बहुत अच्छा हो सकता है ।
संकल्प शक्ति के विकास के लिए एक और महत्त्वपूर्णं प्रयोग है -- सुझाव का | Suggestion या Auto - Suggestion का । बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है । पश्चिम के लोगों ने एक चिकित्सा की प्रणाली का विकास किया हैआटोजेनिक चिकित्सा पद्धति । आटोजेनिक चिकित्सा पद्धति में स्वतः प्रभाव Astra वाली बात होती है । वे कल्पना करते हैं और कल्पना के सहारे वैसा अनुभव करते हैं । यह आटोजेनिक प्रणाली, इसे योग की भाषा में भावात्मक प्रयोग कहा जा सकता है । हमारे यहां भावना का प्रयोग चलता था कि हम वैसा अनुभव करें। यह हाथ है । आप भावना का प्रयोग करें कि यह ऊपर उठ रहा है । अपने आप उठेगा और आपके सिर पर लग जायेगा, आप उठाने
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