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________________ संकल्प-शक्ति का विकास ४७ है। ठीक समय पर काम करना और उसी समय वही काम करना जो जिस समय करना है । एक सूत्र था कि भोजन के समय भोजन, पानी के समय 'पानी, नींद के समय नींद, जागने के समय जागना। यदि सारा नियमित चलता है तो चेतना भी रूपान्तरित हो जाती है। भूख लगती है दस बजे । आज दस बजे खाया । कल बारह बजे खाया। परसों दो बजे खाया । बेचारे ज्ञान-तन्तु क्या करेंगे। भीतर से तो स्राव होने लग गया। यह कंडीशन के साथ चलने वाली चेतना है । पावलाव ने बहुत प्रयोग किये कि ठीक समय पर “घंटी बजती और कुत्ते के मुंह से लार का स्राव होने लग जाता । तो हमारी चेतना भी शर्त के साथ चलती है । हम जिस समय भोजन करते हैं उस समय ज्ञान-तन्तु अपना काम करना शुरू कर देते हैं। ठीक समय आता है, लीवर 'अपना काम करना शुरू कर देता है। पक्वाशय और आमाशय-सब अपनी तैयारी में लग जाते हैं। पूरी तैयारी होती है, तयारी तो करने लगे किन्तु दस बजे भोजन का समय था और भोजन किया बारह बजे। दो घंटे तक तैयारी करते-करते वे थककर विश्राम करने लग जाते हैं। फिर आप भोजन करेंगे तो वे अपना काम नहीं करेंगे । आपका असहयोग कर देंगे । वे भी असहयोग करना जानते हैं। यह मत समझो कि ओदमी ही असहयोग करना जानता है। वे ज्ञान-तन्तु और कर्म-तन्तु भी अपना असहयोग करना जानते हैं । निश्चित समय, नियमितता। हमारे ज्ञान-तन्तु नियम की भाषा को समझते हैं। हमारे कर्मतन्तु नियम की भाषा को समझते हैं। देश-काल इन सारी बातों को समझते हैं। पर हम अपने जीवन में इतने अस्य-व्यस्त, इतने अव्यवस्थित, इतना नियम का और समय का अतिक्रमण करने वाले हैं कि पता ही नहीं चलता। कुछ लोगों में अनिद्रा की बीमारी हो जाती है। नींद नहीं आती । एक कारण यह भी है अनिद्रा का कि सोने का कोई निश्चित समय नहीं है। नींद आने लगे और सो जाएं तो नींद आ जायेगी। नींद आ रही है पर दबाव डालते चले जाते हैं। ऐसी स्थिति बनती है कि नींद भी अपना विरोध प्रकट करती है और नहीं आना शुरू कर देती है । नींद की बात जाने दें . बहुत लोग कोष्ठबद्धता की बीमारी के शिकार होते हैं। कब्ज रहती है । कब्ज का सबसे बड़ा कारण भी यही है—अनियमितता । आवश्यकता है शौच जाने की । उसको भी रोकते हैं। देखते हैं कि दस मिनट, अभी तो बीच में उठकर जाना ठीक नहीं लगेगा। आदमी सोचता है कि सभ्यता के यह विपरीत होगा। अभी बीच में कैसे जाएं ? रोकता है, रोकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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