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एकला चलो रे
जानबूझकर, बिना प्रयोजन, कोई उद्देश्य नहीं है, केवल मखौल में किसी को मार दिया, प्रमादवश मार दिया, ऐसे ही कुतूहलवश मार दिया-इस प्रकार की हिंसा नहीं करूंगा।
उसका एक व्रत है कि जाति-भेद, सम्प्रदाय-भेद, लिंग-रंग-भेद के कारण किसी भी मनुष्य को ऊंचा या नीचा नहीं मानूंगा । मनुष्य जाति एक है, किन्तु हमने अपनी मान्यताओं के कारण, अपनी धारणाओं के कारण ऐसा भेद बीच में खड़ा कर दिया कि किसी आदमी को छोटा मानते हैं, किसी को बड़ा मानते हैं। किसी को स्पृश्य और किसी को अस्पृश्य मानते हैं। छूत और अछूत मानते हैं । इस मान्यता के कारण मानव-जाति में बहुत बड़े विग्रह पैदा हुए हैं। इस साम्प्रदायिक भेद और जातीयभेद ने समाज का बड़ा अहित किया है। इस प्रकार के ग्यारह व्रत हैं अणुव्रत में जो मानव-जाति और मानवसमाज के लिए बहुत कल्याणकारी हैं।
मिलावट नहीं करना, दहेज का प्रदर्शन नहीं करना, रुपये-पैसे लेकर वोट नहीं देना—ये सारे के सारे व्रत हैं। व्रत बहुत छोटे-छोटे लगते हैं किन्तु इस छोटे-छोटे व्रतों के द्वारा हमारी संकल्प-शक्ति का विकास होता हैं। अस्वीकार की शक्ति और व्रत की शक्ति---ये दो संकल्प-शक्ति को विकसित करने के बड़े अच्छे उपाय हैं। ___संकल्प-शक्ति के विकास के लिए तीसरा उपाय है—नियमितता । आप एक छोटा-सा प्रयोग करें। आपका इष्ट मंत्र अलग-अलग हो सकता है । इतने लोग बैठे हैं । मैं आपको कोई मंत्र नहीं बताऊंगा। जो आपका इष्ट हो और जिस पर आपका विश्वास हो, उसका आप एक निश्चित स्थान में, निश्चित समय में प्रतिदिन जाप करें। एक वर्ष प्रयोग करके देखें कि आपकी संकल्पशक्ति कितनी बढ़ जाती है । ठीक वही समय और वही स्थान । निश्चित देश और निश्चित काल । उसका प्रयोग करें तो स्वयं अनुभव होगा कि मेरी आंतरिक शक्ति, क्षमता और संकल्प-शक्ति कितनी बढ़ गई। जो सोचता हूं वही कर लेता हूं, यह वचन-सिद्धि का बहुत बड़ा उपाय है। वचन-सिद्धि का अर्थ है कि मुंह से जो बात निकल जाती है वह बात हो जाती है । यह वचन-सिद्धि का बहुत सुन्दर उपाय है कि तीन वर्ष तक कोई आदमी एक निश्चित समय पर अपने इष्ट मन्त्र का जप करे तो उसकी वचन-शक्ति में परिवर्तन आ जायेगा।
हमारी चेतना बदलती है, भीतर से कुछ बदलता है, ऐसा परिवर्तन महसूस होता है। देश और काल की नियमितता से भी परिवर्तन घटित होता
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