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संकल्प-शक्ति का विकास
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कार नहीं कर पाते । सामने आता है तो फिर रहा नहीं जाता । न आए तो अस्वीकार स्वयं है। पर आए, फिर अस्वीकार कर दे, यह संभव नहीं। इन्द्रियों की मांग, जीभ की मांग, आंख की मांग, कान की मांग-हर चीज की मांग को अस्वीकार नहीं कर पाते । दूसरी है मन की चपलता की मांग । मन में इतने विकल्प उठते हैं, इतनी भाव-तरंगें उठती हैं, उन्हें हच अस्वीकार नहीं कर पाते । हमारी चपलता के कारण हमारे मस्तिष्क में भावों की तरंग उठती रहती हैं । प्रयोजनवश और बिना प्रयोजन, आवश्यक और अनावश्यक, भाव-तरंगें उठती रहती हैं। उन्हें अस्वीकार करने की क्षमता न हो तो जीवन कठिनाई में पड़ जाता है। इसके बाद एक तरंग उठती है। हम एक बात पर ध्यान दें। हम जीवन में वही काम नहीं करते जो जीवन में हमारे लिए आवश्यक होता है। यदि आवश्यक काम ही करें तो बहुत सारी समस्याओं से निपट लेते हैं। पर अनावश्यक काम भी बहुत करते हैं। अनावश्यक लालच, अनावश्यक गुस्सा, अनावश्यक बातचीत । जीवन में तुलना करें कि आवश्यकतावश कितना काम करते हैं और अनावश्यक कितना काम करते हैं। हिंसा भी आदमी को करनी पड़ती हैं आवश्यकतावश । आवश्यक हिंसा कितनी करते हैं और अनावश्यक हिंसा कितनी करते हैं, इस बात का विवेक जाग जाए और यह भेदरेखा स्पष्ट हो हो जाये कि अनावश्यक काम नहीं करना है तो मैं समझता हूं कि ध्यान का एक प्रयोजन सफल हो गया। वह व्यक्ति जीवन में सफल हो गया जो अनावश्यक काम नहीं करता । किन्तु पता चलेगा कि हमारे समय का बहुत बड़ा भाग भी अनावश्यक कामों में बीत जाता है। बहुत अच्छा है कि किसी का न बीते । वह बहुत अच्छा आदमी है जो अनावश्यक कामों में अपने समय का उपयोग नहीं करता, केवल आवश्यकतावश करता है। अनावश्यकतावश आदमी को बुराई भी कर लेनी पड़ती है, जैसे कल्पना करें कि रिश्वत देना बहुत बुरा है । लेना भी बुरा है। स्थिति ऐसी आ जाती है। यह सुनी हुई बातें आपके सामने बता रहा हैं । आप लोग जानते ही होंगे कि कोई बीमार है, हॉस्पिटल में उसे भर्ती करना है। यात्रा करनी है, जरूरी है जाना । टिकट नहीं मिल रहा है । ऐसी स्थितियां हैं, अब ऐसी स्थितियों में रिश्वत के बिना काम नहीं होता। बीमार को अनिवार्यतः भर्ती करना है। अनिवार्यतः यात्रा करनी है। कोई उपाय नहीं, आदमी रिश्वत दे देता है। मैं नहीं कहता कि रिश्वत देना अच्छा है । आप यह न मानें । मैं बुराई का
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