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________________ एकला चलो रे चाहिए। यह हमारी कल्पना है। कल्पना में इतनी ताकत नहीं होती। उसमें इतना बल नहीं होता। जब कल्पना को पुट लगती है, उसकी ताकत बढ़ जाती है। होमियोपैथी दवा में पोटेन्सी बढ़ती चली जाती है। जैसे-जैसे सूक्ष्मता आती है, उसकी क्षमता बढ़ती चली जाती है। आयुर्वेद की दवाइयों में ऐसा होता है। सुना होगा, अभ्रक एक दवाई है। बहुत काम में लेते हैं आयुर्वेद के वैद्य । पांच पुटी अभ्रक होती है और एक हजारी पुटी अभ्रक होती है, मूल्य में बहुत अन्तर होता है, लाभ में बहुत अन्तर होता है। हजार पुटी अभ्रक बनाने के लिए अनेक वर्ष लग जाते हैं । दादा शुरू करता है तो बेटे के काम आती है और कभी-कभी पोते के काम आ जाती है। काफी वर्ष लग जाते हैं। पन्द्रह-बीस वर्ष लग जाते हैं पुट देते-देते। किन्तु उसकी ताकत बढ़ जाती है । भावनाभावित होने पर हर वस्तु की शक्ति बढ़ जाती है । द्रव्य वही होता है पर जैसे-जैसे भावना की पुट लगती है वैसे-वैसे उसकी क्षमता बढ़ती चली जाती है । यदि सौ बार पानी को भी मथा जाए तो उसमें बिजली बढ़ जाएगी। पानी को उलट-पुलट किया जाए, उसकी क्षमता बढ़ जाएगी। दूध सीधा आया और पी लिया । दूध को पांच-दस बार नीचे डाला, एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डाला। उससे भी विद्युत्-शक्ति बढ़ जाएगी। तो यह भावना और पुट के कारण परिवर्तन होता है। हमारी कल्पना-शक्ति जब भावना से पुटित होती है तो उसको क्षमता बढ़ जाती है। कल्पना फिर दृढ़ निश्चय और संकल्प बन जाता है और संकल्प की शक्ति होती है तो फिर चेतना का परिवर्तन शुरू होने लगता है। संकल्प-शक्ति के अभ्यास के लिए पहले करना होता है—अस्वीकार की शक्ति का विकास । जब तक हमारी अस्वीकार की शक्ति नहीं बढ़ती तब तक संकल्प-शक्ति का विकास नहीं हो सकता । हमारी इन्द्रियों की मांग, मन की मांग और परिस्थिति की मांगइन मांगों को अस्वीकार करने की क्षमता नहीं होती है तो संकल्प-शक्ति का विकास नहीं हो सकता। ___ सामने बढ़िया भोजन है-सुस्वादु, जीभ को स्वाद देने वाला । इन्द्रियों की मांग है कि और खाएं, और खाएं। अगर अस्वीकार की क्षमता नहीं है तो फिर खाता चला जाता है और खाने का क्या परिणाम होता है, वह भी सब जानते हैं। बहुत सारे लोग, जिनमें पचाने की क्षमता नहीं, फिर भी बहुत खा जाते हैं। दुःख पाते हैं, फिर भी खाते हैं। बड़े आश्चर्य की बात है । ऐसा क्यों होता है ? उनमें अस्वीकार करने की क्षमता नहीं है। अस्वी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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