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संकल्प-शक्ति का विकास वे टूट जाते तो कुरूपता फिर नहीं रह पाती। आदमी अपने आप में बड़ा विचलित और उद्विग्न हो जाता । एक वकील था और वकील को पुत्री बड़ी कुरूप थी। बहुत कुरूप, कोई शादी नहीं करता । सोचा, आंखवाला तो शादी नहीं करेगा। ऐसे व्यक्ति को खोजा जो अन्धा था। अन्धे को ब्याह दी। कुछ दिनों बाद एक वैद्य आया और उसने कहा-'वकील साहब ! मेरे पास ऐसी दवा है कि मैं अन्धे को भी दृष्टि दे सकता हूं। आपका दामाद अन्धा है, मुझे आदेश दें। मैं चिकित्सा करू और उसको दृष्टि दे दूं।' वकील ने कहा-'मेरे दामाद को अन्धा ही रहने दो। कुरूप लड़की के पति को अन्धा ही रहने दो । आंख हो गई तो फिर तलाक जल्दी ही हो जायेगा, देरी नहीं लगेगी।'
हमारी कुरूपता चल रही है, हमारी मूच्र्छा और हमारा आवरण है अज्ञान का इसलिए। किन्तु जब आंख खुलने लगती है, मूर्छा थोड़ी-थोड़ी टूटने लगती है, अज्ञान मिटने लगता है तो फिर कुरूपता का टिकना भी कठिन हो जाता है। परिवर्तनशील संसार में, बदलती हई दुनिया में चेतना का भी परिवर्तन होना जरूरी है । अन्यथा संतुलन स्थापित नहीं रह पाएगा। चेतना को बदलने के लिए, अपनी भीतरी कुरूपता को समाप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है संकल्पशक्ति का विकास । मनुष्य बदलता है, चेतना बदलती है । उसका एक शक्तिशाली माध्यम है-संकल्प-शक्ति। आज तक जो विकास हुआ है उसमें संकल्प-शक्ति का बड़ा योगदान रहा है । आदिकाल से आज तक मनुष्य ने जितनी घाटियां पार की हैं, जो नहीं था उसे प्राप्त किया है, जितना विकास किया है, उसमें संकल्प-शक्ति का बड़ा योगदान रहा है । संकल्प-शक्ति के सहारे वह बदलता गया, बदलता गया। उसके शरीर का आकार बदला है, प्रकार बदला है, इन्द्रियां बदली हैं, चेतना बदली है। पूरा विकास होता गया । इच्छाशक्ति, संकल्प-शक्ति और एकाग्रता की शक्ति-ये तीन हमारी बड़ी शक्तियां हैं । ये तीन मनुष्य की दुर्लभ विशेषताएं हैं और इन शक्तियों के आधार पर ही आज के विकास के बिन्दु पर पहुंचे हैं। संकल्प-शक्ति हमारी बहुत बड़ी शक्ति है। __ संकल्प-शक्ति का अर्थ है-कल्पना करना और उस कल्पना को भावना का रूप देना, दृढ़ निश्चय करना । जब हमारी कल्पना उठती है और वह कल्पना दृढ़ निश्चय में बदल जाती है तो हमारी कल्पना संकल्प-शक्ति बन जाती है। पहले-पहल कल्पना उठती है, ऐसा हो सकता है, ऐसा होना
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