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________________ आत्म-निरीक्षण बहुत डरपोक हो। मन में एक सन्देह पैदा कर दिया। दूसरे सांसदों के मन में भी विभिन्न प्रकार का सन्देह पैदा कर दिया। दूसरे से फिर बात की, तीसरे से फिर बात की। बात का सिलसिला चालू रहा और सबको एकदूसरे के प्रति संदिग्ध बना दिया। सब के मन में एक भ्रम पैदा कर दिया, एक भ्रांति खड़ी हो गई। जब देखा कि काम बन गया तब मगध सम्राट को सूचना भेजी कि अब आक्रमण किया जा सकता है। आक्रमण हुआ । पता चला, रणभेरी बजी। गणतंत्र की यह प्रथा थी कि जैसे ही रणभेरी बजे, सब तैयार होकर युद्ध के लिए चल पड़ें। कोई नहीं आया, आ ही नहीं रहा है । महासामन्त ने सोचा, गण के प्रमुख ने सोचा कि यह क्या हो गया । सेनापति ने सोचा कि यह क्या हो गया। कोई भी कुमार युद्ध करने के लिए नहीं आ रहा है । कोई भी सामन्त नहीं आ रहा है। कोई नहीं आ रहा है, बात क्या है ? व्यक्तिगत रूप से मिले। एक बोला-मई ! मैं तो कायर आदमी हूं, जो शक्तिशाली हैं उनको युद्ध में ले जायें । दूसरे से मिले, कहामैं तो सदाचारी नहीं हूं, भ्रष्टाचारी हूं। जो कोई सदाचारी हो उसको ले जाएं । हर व्यक्ति के मुंह शिकायत । हर व्यक्ति के मन में संदेह भरा है । सोचा, गणतन्त्र समाप्त हो गया। अब नहीं चलने वाला। यह बहुत बड़ा रहस्य होता है कि व्यक्ति के मन में संदेह पैदा कर देना, संशय पैदा कर देना । जहां संदेह पैदा हो गया वहां सारी शक्ति समाप्त हो गई । चेतना ही समाप्त हो गई। उपाय के प्रति हमारा विश्वास होना चाहिए। इतना गहरा विश्वास कि यह होगा, होगा और निश्चित ही होगा। नियम है कैसे नहीं होगा। एक किसान कभी संदेह नहीं करता। अगर किसान संदेह करे तो कभी बीज बो ही नहीं सकता। कैसे बोयेगा ? यह तो स्पष्ट है कि वर्षा होगी या नहीं होगी, निश्चित नहीं है उसके सामने । फिर भी पूरे आत्मविश्वास के साथ बीज बोता है । कभी वर्षा नहीं भी होती। खेती भी नहीं होती। बीज व्यर्थ भी चला जाता है पर दूसरे वर्ष फिर तैयारी करेगा। जैसे ही वर्षा हुई वह हल लेकर बीज बोने चला जाएगा । यदि किसान के मन में संदेह व्याप जाये तो फिर सब लोग माला ही भजें रोटी मिलेगी ही नहीं। जप ही करते रहें फिर, और वह भी नहीं होगा। भूखा आदमी कैसे जप कर पाएगा? पर किसान के मन में कोई संदेह नहीं होता। पर पता नहीं अपने व्यक्तित्व के विकास में हर व्यक्ति को संदेह हो जाता है। यह करता तो हूं, पर होगा या Jain Education International anal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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