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________________ एकला चलो रे से बुरी बात है—मूर्छा । मोह का आवरण इतना सघन होता है कि मनुष्य जानते हुए भी नहीं जानता । जानता तो है, पर जानते हुए भी नहीं जान पाता । यह स्थिति बहुत भयंकर होती है। इन सारे अपायों से निपटने के लिए उपाय खोजना जरूरी है और वह उपाय भी सम्यक् हो ।। चौथा सूत्र होगा, उपाय को जान लिया पर उसके प्रति हमारा विश्वास होना चाहिए। यदि विश्वास नहीं है तो फिर काम नहीं बन सकता । विश्वास बहुत आवश्यक है। पुनःशिक्षण (री-एजुकेशन) की बात आती है मनोविज्ञान में । उसमें एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि रोगी को अपने रोग का भान होना चाहिए, रोगी को चिकित्सक में विश्वास होना चाहिए, रोगी को अपना रोग मिटाने की तीव्र आकांक्षा होनी चाहिए और उसे सही परामर्श मिलना चाहिए । ये चार बातें होती हैं तो रोग मिटता है । ये चार बातें नहीं होती है तो बीमारी की चिकित्सा नहीं हो सकती। रोग मिटाने की तीव्र आकांक्षा नहीं है तो रोग मिटाने की बात ही प्राप्त नहीं होती। आकांक्षा है और चिकित्सक में विश्वास नहीं है, रोगी सोचता है-दवा तो ले रहा हूं, स्वस्थ होऊंगा या नहीं होऊंगा। नहीं होगा-बिलकुल नहीं होगा। जब मन में इतना संदेह है, इतना संशय है तो होने की बात प्राप्त ही नहीं होती। “संशयात्मा विनश्यति'—यह जो कहा गया बहुत महत्त्वपूर्ण है कि जिसके मन में सन्देह पैदा हो गया, फिर वह सफल नहीं होगा। पुलिस का, आरक्षक या सी० आई० डी० का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र होता है-भेदनीति या संदेह 'पैदा कर देना । जो सन्देह पैदा करने में सफलता पा लेता है वह जीत जाता है क्योंकि संदेह पैदा कर दिया, इसका मतलब है कि ध्वस्त कर दिया। ___ मगध सम्राट और लिच्छवी गणतंत्र परस्पर युद्ध की स्थिति में थे। 'लिच्छवी गणतंत्र पर विजय पाना था। कैसे करें ? मगध सम्राट् की स्थिति नहीं थी, शक्ति नहीं थी कि इतने बड़े शक्तिशाली गणतंत्र पर विजय पा लें। उपाय खोजा। प्रचार किया गया कि राजा रुष्ट हो गया और मंत्री को देश से निष्कासित कर दिया। जब एक देश से निष्कासन होता है तो दूसरे देश में शरण ली जाती है। लिच्छवी गणतंत्र ने उसे शरण दी। बड़ी खुशी से शरण दी कि मंत्री बड़ा बुद्धिमान है। शरण मिल गई। उसने अपना काम शुरू कर दिया। वह किसी से कहता-तुम गणतंत्र के स्तम्भ हो। बड़े स्तम्भ हो, बड़े-शक्तिशाली हो । पर मुझे पता नहीं चला कि यह तुम्हारे क्या चल रहा है ? अमुक व्यक्ति से कहा कि तुम तो बहुत कायर आदमी हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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