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आत्म-निरीक्षण
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समझी नहीं तुम बात को सास गई। दीया जलाया, अंधेरा समाप्त हो
गया ।
उपाय के बारे में हमारी जानकारी सही नहीं होती तो हम प्रयत्न तो करते हैं, परिश्रम करते हैं, पर अंधेरा सिटला नहीं । केवल हाथ छिल जाते हैं, लहूलुहान हो जाते हैं । लाठियां टूट जाती हैं। उपाय के अभाव में अपाय मिटता नहीं । आवश्यक है कि हमारा उपाय सम्यक् होना चाहिए । हमें पहले सम्यक् उपाय की जानकारी होनी चाहिए ।
हमारे भीतर भय होता है। अज्ञान होता है। मुर्च्छा होती है । आवेश होता है । ये सारे अपाय हैं। हर आदमी में भय होता है। जिस व्यक्ति में प्राण का मोह है, जीने का मोह है, उस व्याक्ति में भय होता है । तब तक भय महीं छूटता जब तक जिजीविषा नहीं छूट जाती । प्राण का मोह नहीं छूट
जाता ।
एक महिला ने अपने पति से कहा- देखो, घर में चोर घुस गए और मैंने बहुत बढ़िया रसोई बनाई । वे सब खा रहे हैं। आगे भी और कुछ करेंगे । माल भी ले जायेंगे । पति ने कहा- क्या करू ? पत्नी बोली- पुलिस को फोन करें कि घर में चोर घुस गये हैं । पति बोला- पुलिस को फोन करने की कोई जरूरत नहीं, पहले डॉक्टर को फोन करो। इतना भय लग रहा है कि पुलिस आने से पहले ही मैं कहीं समाप्त न हो जाऊं । भय होता है, बहुत भय होता है आदमी में । आवेश होता है । अपना भान नहीं होता । अज्ञान होता है । इतना विरोधाभास और इतनी विसंगतियां हमारे जीवन में होती हैं कि हम सही निर्णय नहीं ले पाते । विरोध में जीते हैं, विसंगतियों में जीते हैं । स्वयं बुराई करते चले जाते हैं । अपनी बुराई का पता हमे नहीं चलता। दूसरे की बुराई का पता चल जाता है |
एक व्यंग्य ही होगा, पर बहुत तीखा व्यंग्य है । एक पत्नी ने अपने पति से कहा- कैसा नौकर रखा है ! यह तो बड़ा चोर है । पति ने कहा क्या हुआ ? पत्नी बोली- हम कल होटल में गये थे और वहां से चांदी का चम्मच उठा लाये थे, नौकर ने उसे चुरा लिया ।
बड़ी विचित्र बात ! स्वयं होटल से चांदी का चम्मच उठा लाये । वह चोरी लगतो ही नहीं है और नौकर ले गया - चोर हो गया । यह एक विरोधाभास है जीवन का । जीवन की एक विसंगति है कि मनुष्य को अपनी बुराई का पता नहीं चलता । अज्ञान को मैं इतना बुरा नहीं मानता। अज्ञान
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