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________________ ३२ एकला चलो रे भूलें कि शरीर स्वस्थ हो, मन स्वस्थ हो तो फिर सामाजिक स्वास्थ्य के प्रति, दायित्व के प्रति हमारी चेतना जागरूक रह सकती है और उसके लिए इन उपायों को खोजना बहुत जरूरी है। उपाय खोजने पर मिल जाते हैं। पर उपाय सही हो । उपाय के प्रति हमारा विश्वास हो। उपाय की सही जानकारी—यह आत्म-निरीक्षण का तीसरा सूत्र है । बहुत बार ऐसा भ्रम होता है कि जो अनुपाय है उसे उपाय मान लिया जाता है और जो उपाय है, उसे अनुपाय मान लिया जाता है। ऐसी स्थिति में चेतना का पूरा विकास नहीं होता । उपाय के प्रति भी हमारी धारणा सम्यक नहीं होती। एक कहानी है । है कहानी पर मर्म को छूती हुई। एक सास ने बहू से कहा-बहूरानी ! मैं अभी बाहर जा रही हूं। एक बात का ध्यान रहे, हमारे घर में अंधेरा न घुसने पाये । बहू बहुत भोली थी, अत्यन्त भोली। विवेक-चेतना जागृत नहीं थी, बुद्धि भी विकसित नहीं थी और समझने की क्षमता भी नहीं थी। सास ने कहा था कि अंधेरे को भीतर घुसने नहीं देना है, ठीक बात है । सास चली गई, सांझ होने को आयी। उसने सोचा कि अंधेरा कहीं घुस न जाये, पहले से ही व्यवस्था कर दूं। सारे दरवाजे बन्द कर दिये । सब खिड़कियां बन्द कर दीं । जो मुख्य दरवाजा था उसे भी बन्द कर दिया । दरवाजे के पास लाठी लेकर बैठ गई। सोचा–दरवाजा खुला नहीं है, कोई खिड़की खुली नहीं हैं, कहीं भी कोई छेद नहीं। आयेगा तो दरवाजा खटखटायेगा, लाठी लिये बैठी हूं, देखती हूं कैसे अन्दर आयेगा। पूरी व्यवस्था कर दी। रात जैसे-जैसे ढलने लगी, अंधेरा गहराने लगा। सोचा-कहां से आ गया ! कहीं भी कोई रास्ता नहीं है । हो न हो दरवाजे से ही आ रहा है । अन्धकार को पीटना शुरू कर दिया। काफी पीटा कि निकल जाओ मेरे घर से ! कहां से घुस आये ! मेरे घर से बाहर चले जाओ ! मेरी सास की मनाही है कि तुम्हें भीतर घुसना नहीं है ! खूब लाठियां बजाईं । लाठी टूटने लगी। हाथ छिल गए। लहूलुहान हो गए। अंधेरा तो नहीं गया। परेशान होकर बैठ गई। सास आयी। दरवाजा खोला । कहा-यह क्या किया ? मैंने कहा था कि अंधेरे को मत आने देना घर में । वह बोली-देखो, मेरे हाथ देख लो। लहूलुहान हो गये। लाठी टूट गई । मैंने बहुत समझाया, बहुत रोका, पर इतना जिद्दी है कि माना ही नहीं और यह तो घुस ही गया। सास ने सिर पर हाथ रखा। कहा कि बहूरानी ! अंधेरे को ऐसे मिटाया जाता है ? क्या अंधेरा ऐसे मिटता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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