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आत्म-निरीक्षण
कन छोड़ दिया, जागरूकता का मूल्यांकन छोड़ दिया, ध्यान को छोड़ दिया । यह मान लिया कि ये हमारे लिए उपयोगी नहीं हैं। हमारे सामाजिक जीवन में इनका कोई मूल्य नहीं है। जो हमारी विशेषता को बढ़ाने वाले, हमारी क्षमता को बढ़ाने वाले तत्त्व थे उनकी हमने उपेक्षा कर डाली । किसी समय हिन्दुस्तान, जो उन्नति के शिखर पर पहुंचा हुआ था और जो स्वर्ण युग में पहुंचा था, जगद्गुरु बनने का गौरव इसको प्राप्त हुआ था तो किसी सम्पत्ति के कारण नहीं हुआ था, वैभव के कारण नहीं हुआ था । वैभव के कारण बहुत प्रतिष्ठा भी नहीं होती। आज भी हम देखें, कुछ देश वैभवशाली हैं किन्तु वैभवशाली होने के कारण वे कोई बहुत प्रतिष्ठा नहीं पा रहे हैं । उनके प्रति बड़ा आक्रोश जाग रहा है । बड़ी प्रतिक्रिया जाग रही है । वैभव जो विज्ञान का होता है, ज्ञान का होता है, आत्मबल और मनोबल का होता है, चेतना के विकास का होता है, उसके प्रति गौरव का भाव जागता है। हिन्दुस्तान के प्रति समूची दुनिया में एक गौरव का भाव था। हजारों-हजारों लोग यहां की विद्या को सीखने के लिए बाहर से आते थे । किन्तु आज हमने भुला दिमा, अपनी सम्पत्ति को भुला दिया और सीखने की बात, सिखाने की बात तो दूर हो गयी, आज क्या सिखायें ? सिखाने की बात भी हमारे पास नहीं रही। जिन लोगों ने हमसे सीखा, वे उसका उपयोग कर रहे हैं ।
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ध्यान जापान में गया, चीन में गया। भारत से गया । बौद्ध धर्म के साथ गया। बाहर के बहुत देशों में गया। वे लोग उसका उपयोग कर रहे हैं। हां अनेक पद्धतियां चल रही हैं जो शरीर बल को बढ़ाती हैं, मनोबल को बढ़ती हैं और अनुशासन को बढ़ाती हैं। एक जापानी हड़ताल भी करेगा तो काम बन्द नहीं करेगा। कोरी काली पट्टी हाथ पर बांध देगा, पर काम बन्द नहीं करेगा। फैक्टरियां बराबर चलेंगी। कोई व्यवधान पैदा नहीं होगा राष्ट्र के विकास में । इस अनुशासन के पीछे वहां ध्यान की बहुत बड़ी प्रेरणा है । वे स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं कि हमारे राष्ट्र में अनुशासन, व्यवस्था का विकास हुआ है, उसके पीछे ध्यान का बहुत बड़ा बल है । आपको आश्चर्य होगा कि वहां के सैनिकों में सबसे ज्यादा ध्यान चलता है । विश्वविद्यालयों में भी चलता है। स्वतंत्र एक पाठ्यक्रम होता है। छहछह महीने का कोर्स है और एकान्त में शिविर लगते हैं, उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है, किन्तु सैनिक लोग सबसे ज्यादा ध्यान सम्प्रदाय के अनुयायी हैं । कोई कमी नहीं आयी । प्रत्युत विकास ही हुआ है । हम इस बात को न
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