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________________ एकला चलो रे माना जाता था कि योग का अभ्यास किसी योगी के लिए होता है । पर आज तो मैं देखता हूं कि हर आदमी को योगी होने की जरूरत हो गई है । इसलिए कि पुराने जमाने में तो कोई राजा होता था। आज तो हर आदमी राजा बन गया। जब वोट देने का प्रश्न आता है, हर आदमी के हाथ में इतना अधिकार आ जाता है कि शासन करने वाले भी उसके पीछे-पीछे चक्कर लगाते हैं। राज्य का विस्तार हो गया। विकेन्द्रित हो गई सत्ता । साधना का भी विस्तार हो गया। आज इतनी: मानसिक समस्याएं हैं कि यदि कोई व्यक्ति थोड़ा ध्यान का अभ्यास नहीं करता, एकाग्रता और तन्मयता का अभ्यास नहीं करता है तो शायद उसके लिए मानसिक रूप से स्वस्थ रहना भी असम्भव जैसा हो जाता है। इसलिए आज प्रत्येक व्यक्ति को एक अर्थ में योगी होना भी जरूरी है। ऐसा होने से यह नहीं होगा कि आप अपने कर्त्तव्य से विमुख बन जायेंगे। इससे कर्त्तव्य के प्रति विमुखता नहीं आयेगी, प्रत्युत् कर्तव्य के प्रति और अधिक प्रखरता आयेगी, जागरूकता बढ़ेगी, तीक्ष्णता आयेगी। .. लोग तलवार से ही लड़ते रहे हैं। सैकड़ों वर्षों तक तलवार और भाले से लड़ते रहे हैं । सामने बन्दूक आयी, पराजित होना पड़ा। फिर बन्दूक से लड़ते रहे। तोप आयी तो पराजित होना पड़ा। तेज शस्त्र आता है तो सामान्य शस्त्र उसके सामने पराजित हो जाता है। हमारे चित्त की भी यही बात है। हम एक चेतना की अवस्था पर जीते हैं जो तलवार जैसी होती है और सामने बन्दूक जैसी चेतना आती है तो वहां वह पराजित हो जाती है । विकासशील देश - का, विकासशील व्यक्ति का हमेशा यह कर्तव्य होता है कि दौड़ में पीछे न रहे। सामने बन्दुक है तो अपनी चेतना को भी बन्दुक बना ले । तोप है तो तोप बना ले । अणु है तो अणु बना ले । गति में जो पीछे रह जाता है, वह हमेशा मार खाता है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि चेतना को तीक्ष्ण बनायें, विकासशील बनायें। हिन्दुस्तान इतना बड़ा देश है-सत्तर करोड़ आदमियों का देश । यहां अन्तर्राष्ट्रीय खेल होते हैं । मुश्किल से कभी-कभी एक स्कर्ष, पदक मिलता होगा, नहीं भी मिलता है । रजत पदक भी मुश्किल से मिलता है। बड़ा आश्चर्य है ! छोटे-छोटे देश लाखों और एक करोड़ की जनसंख्या वाले देश अनेक स्वर्ण पदक ले जाते हैं, रजत-पदक ले जाते हैं और हिन्दुस्तान पीछे रह जाता है । कारण क्या है ? कारण यही है कि हमने एकाग्रता का मूल्यां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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