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एकला चलो रे
और मात्रा विष होती है । एक मात्रा में हर बात अमृत बन सकती है । हमारे यहां के आयुर्वैज्ञानिकों ने संखिया को भी अमृत बता दिया । संखिया जैसे उग्र जहर का अमृत रूप में ऐसा प्रयोग किया कि मरता-मरता आदमी भी बच जाता है। संखिया भी बड़ा अमृत है। जिसे अमृत कहा जाता है—दूष को अमृत कहा जाता है। एक दिन में एक साथ दस किलो, बीस किलो दूध पी लें और फिर देखें, दूध कैसा अमृत होता है। मात्रा का अतिक्रमण होने पर अमृत विष बन जाता है और मात्रा के अनुपात में विष अमृत बन जाता है । यह चिन्तन, कल्पना और स्मृति हमारे लिए अमृत का भी काम कर सकते हैं
और हमारे लिए जहर का भी काम कर सकते हैं। मानसिक असन्तुलन को पैदा करने में ये तीनों मुख्य तत्त्व बन सकते हैं। अब इन्हें रोकने के लिए हमें बीच में एक रेखा खींचनी होगी और वह रेखा दीर्घ श्वास का अभ्यास हो सकता है।
हम सन्तुलन और असंतुलन पैदा करने वाले तत्त्वों को जानें और असंतुलन के निवारक उपायों को काम में लें तथा संतुलन के द्वारा कसे नई जीवर पद्धति का निर्माण किया जा सकता है-इन सारी बातों पर विचार करें तो निश्चित ही जीवन आनन्दमय होगा, शक्तिमय होगा, चेतनामय होगा और मानसिक सन्तुलन की चेतना जागृत होगी।
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