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________________ एकला चलो रे भी बन्द नहीं होता । सपने-सपने, सपने और सपने । चक्का चलता ही रहता दीर्घ श्वास का प्रयोग निविचारता का प्रयोग है। यह चिन्तन को सीमित करने का प्रयोग है। यदि अच्छा अभ्यास हो जाता है तो जब चाहें चिन्तन कर सकते हैं और जब चाहे तब चिन्तन को रोक सकते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जिन्हें भाषण देना होता है तो पहले पूरी तैयारी करते हैं । बोलते हैं तो चिन्तन के साथ बोलते हैं। और भाषण देने के बाद भी चिन्तन चलता रहता है। अगर यह कहता तो और अच्छा होता, यह कहता तो और भी अच्छा होता । तीन भाषण हो जाते हैं। एक जनता के सामने आता है, दो अपने मस्तिष्क में रहते हैं । तीन भाषण देने वाले लोग ही मिलेंगे। ऐसे व्यक्ति विरल हैं जो भाषण से पहले भी चिन्तन नहीं करते, भाषणकाल में चिन्तन किया और समाप्त, 'निःशेषम्'। मैंने एक सूत्र बनाया था निश्चिन्त होने के लिए, वह 'निःशेषम्' । हम कोई भी काम करें, गम्भीर अध्ययन, गम्भीर शोध या गम्भीर प्रवृत्ति करें, तब तक पूरी तन्मयता के साथ करें, उसमें डूब जाएं। जैसे ही उठे और एक बात का संकल्प ले लें-निःशेषम् । बस, काम मेरा पूरा हो गया, कुछ भी बाकी नहीं बचा । बाकी बचा ही नहीं । अब कल नया अध्याय शुरू करूंगा। नया जीवन शुरू करूंगा। नया काम शुरू करूंगा। बाकी कुछ भी नहीं बचा है । हम यह भार लेकर उठते हैं कि इतना काम बाकी रह गया तो काम होगा या नहीं होगा पर दिमाग की शक्ति अवश्य खर्च हो जायेगी । तनाव बढ़ जायेगा और वह चिंतन चिन्ता में बदल जायगा। आपको पता है कि रावण जैसे शक्तिशाली व्यक्ति ने मरते समय कहा था कि मेरी इतनी बातें अधूरी रह गईं। कौन व्यक्ति है जो यह नहीं कहता कि अधूरा रह गया। एक साधना करने वाला आध्यात्मिक व्यक्ति कह सकता है कि मेरा कोई काम अधरा नहीं है । सब पूरा हो गया। दूसरा कोई व्यक्ति नहीं कह सकता। हर आदमी सोचता है कि यह अधूरा रह गया। लड़के को वहां भेजना था, अधूरा रह गया । यह अधूरे-अधूरे की बात ने सारे जीवन के रस को सुखा दिया। अन्यथा कितना अच्छा हो, आज हमने किया सोने से पहले या काम से उठने से पहले उतना कर लिया। अब कल फिर नया जीवन शुरू करना है। कोई अधूरापन नहीं होगा और वह चिंतन चिंता नहीं बन पायेगा। यदि हम चिंतन और चिता के भेद को समझ लें तो कोई उलझन नहीं होगी। एक बार आचार्यश्री तुलसी के सामने एक व्यक्ति आया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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