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________________ २२ एकला चलो रे कहूं कि दस मिनट बिल्कुल श्वास न लें, कौन मानेगा इस बात को । एक व्यक्ति भी शायद यहां नहीं होगा । दस मिनट की बात मैंने बहुत कह दी। एक मिनट भी श्वास न लें, एक मिनट में तो जी घबराने लग जाएगा । किसी-किसी का कोई अभ्यास किया हुआ हो तो बात छोड़ देता हूं । पर सामान्य आदमी का जी मचलने लगेगा। ऐसा लगेगा कि जी तो निकल रहा है। नहीं रहा जा सकता । अनिवार्यता श्वास की ज्यादा है या रोटी की ? श्वास की ज्यादा है । अनिवार्यता तो है पर बिना पैसे मिलता है, इसलिए उपेक्षा श्वास की ज्यादा होती है । रोटी की कोई उपेक्षा नहीं करता। हम इस बात पर ध्यान केन्द्रित करें। हम जो प्रयोग कर रहे हैं, वह एक प्रकार से जीवन की नयी पद्धति को समझने का अभ्यास कर रहे हैं हमारे जीवन की पद्धति यह होनी चाहिए कि जिसका जितना मूल्य, उसे उतना मूल्य देना समझ लें । अधिक मूल्य हैं और कम मूल्य दिया जाता है वह सामाजिक जीवन अच्छा नहीं होता । 'पूज्यपूजाव्यतिक्रमः'--जहां पूज्य की पूजा का व्यतिक्रम होता है वहां समस्याएं पैदा होती हैं । जो जितन पूज्य है उसकी उतनी पूजा होनी चाहिए। आज की हमारी सामाजिक पद्धति जीवन की पद्धति ऐसी बन गई है कि जिसका जितना मूल्य उसका उतन मूल्य नहीं आंका जा रहा है। हमें श्वास का सबसे ज्यादा मूल्यांकन करन चाहिए। दूसरी बात है, प्राणशक्ति का सबसे ज्यादा मूल्यांकन करन चाहिए । प्राणशक्ति का प्रयोग, दीर्घ श्वास का प्रयोग, और भी अनेक प्रयो हैं। प्रयोगों की ऐसी शृङ्खला है कि जिसका जितना मूल्य, उसे उतना मूल्य दिया जाये । एक नयी जीवन की पद्धति बनेगी। इसका परिणाम यह होग कि अनायास ही मानसिक सन्तुलना प्राप्त हो जाएगा। ___ आज का युग मानसिक तनावों का युग है । इतनी चिन्ता, इतनी परे शानियां, "इतना भय । अधिकारी को भी भय और अधिकृत है उसको भी भय । शासक हैं उसको भी भय है और शासित है उसको भी भय है । भ से मुक्त कोई नहीं है । और भय को छुड़ाने के लिए उपाय करता है, वह भय का कारण बन जाता है । एक आदमी को डर बहुत लगता था। किस समझदार आदमी के पास गया । जाकर कहा कि मुझे डर बहुत लगता है पुराने जमाने में ये डोरे, यंत्र मंत्र, तंत्र काफी चलते थे । आज भी कुर चलते हैं। उसने कहा-एक ताबीज बना दो जिससे मेरा डर समाप्त है जाये । जानकार या कोई ओझा रहा होगा । ताबीज बनाकर हाथ पर बां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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