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________________ मानसिक संतुलन हमारे आस-पास प्राण बहुत है। पूरा आकाश-मण्डल प्राण से भरा है। आजकल इतना प्रदूषण हो गया कि प्राणशक्ति भी कम होने लग गई। फिर भी अभी तक हिन्दुस्तान में यह सुरक्षा है कि इतना प्रदूषण नहीं है । अभी भी प्राणशक्ति काफी बची है । हम प्राणशक्ति को ले सकते हैं। जिस व्यक्ति ने दीर्घ श्वास का अभ्यास किया है. पूरा श्वास लेना सीखा है, वह प्राणशक्ति से कभी खाली नहीं हो सकता और प्राणशक्ति के अभाव में वह ग्रस्त नहीं हो सकता बीमारियों से, मानसिक व्याधियों से। दीर्घ श्वास का अभ्यास छोटी-सी बात लगती है, पर छोटी बात बहुत मूल्यवान होती है। हमारी आदत तो है, जो सबसे ज्यादा अनिवार्य है उसे भी हम सबसे ज्यादा कम मूल्य देते हैं । पानी हमारे लिए बहुत जरूरी है। पानी को कम मूल्य देते हैं । सूर्य का ताप भी हमारे लिए बहुत जरूरी है, उसे भी हम कोई मूल्य नहीं देते, क्योंकि वह बिना मूल्य ही मिलता है। एक अध्यापक ने विद्यार्थी से पूछा कि बताओ बिजली के प्रकाश में और सूर्य के प्रकाश में क्या अन्तर होता है ? उसने कहा-यह तो बहुत सीधी बात है कि बिजली का प्रकाश पैसे से मिलता है और सूर्य का प्रकाश बिना पैसे से । कितनी सीधी बात ! जो सीधा मिलता है, जिसका मूल्य नहीं होता, उसके प्रति हमारा ध्यान नहीं जाता। श्वास, हवा बिना पैसे की मिलती है । इसलिए श्वास, हवा पर हमारा ध्यान केन्द्रित नहीं होता। रोटी का मूल्य है तो बहुत सावधानी बरतते हैं। कपड़े का मूल्य है तो बहुत सावधानी बरततेहैं । मकान का मूल्य है तो बहुत सावधानी बरतते हैं । जिनका मूल्य है उनके प्रति हम सावधान हैं और जिनका मूल्य नहीं है उनके प्रति हम सावधान नहीं हैं । किन्तु अनिवार्यता की दृष्टि से देखें तो रोटी के बिना एक आदमी सौ दिन जी सकता है । हमारे कुछ साधु-साध्वियां ऐसे हैं, जिन्होंने सौ दिन तक कुछ नहीं खाया। छह महीने तक कुछ नहीं खाया । छह-छह महीने का उपवास करने वाले लोग आज भी हैं। और ऐसे भी लोग हैं जो बारह महीने तक केवल छाछ के ऊपर आने वाले पानी के सिवाय कुछ भी खाया नहीं, और पिया नहीं। मेवाड़ में छाछ को गर्म करते हैं और ऊपर जो पानी आता है हरा-हरा, उसे कहते हैं आछ । उस आछ को पीकर बारह महीने का पूरा समय बिताया। न कुछ खाया और न पानी ही पिया। ऐसे लोग हैं तो खाये बिना और पानी पीए बिना तो कुछ दिन रहा जा सकता है पर श्वास के बिना नह रहा जा सकता । बहुत कम रह पाते हैं श्वास लिये बिना। अगर मैं आपरं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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