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एकला चलो रे
पद्धति के कारण होती हैं।
आज का युग वैज्ञानिक शोधों का यूग है । आज नयी-नयी बातें सामने आ रही हैं। हम सबसे ज्यादा उपेक्षा करते हैं या तो श्वास की या भोजन की। हम भोजन के बारे में बहुत लापरवाह हैं। कोई ध्यान नहीं देते । इतना समझ रखा है कि पेट भर लेना । बस ! बात समाप्त हो गयी। अब कोरी रोटियां ही रोटियां खा लीं, कार्बोहाइड्रेट खा लिया, कोरा श्वेतक्षार खा लिया । पेट तो भर लिया पर परिणाम क्या होगा ? शरीर का संतुलन बिगड़ जाएगा। मन का संतुलन भी बड़ा खतरनाक होता है । सन्तुलित भोजन
और संतुलित मन, ये दो स्थितियां होती हैं तो हमारी सारी गतिविधियां ठीक चलती हैं । संतुलित भोजन में दूध की चिकनाई की भी जरूरत होती है । लवण की जरूरत होती है । विटामिन की जरूरत होती है । क्षार की जरूरत होती है । ये सारी आवश्यकताएं होती हैं । प्रोटीन भी आवश्यक होता है । सब कुछ मिलता है तो मस्तिष्क भी ठीक काम करता है । सारा तंत्र ठीक काम करता है अन्यथा अनेक मानसिक विकृतियां पैदा हो जाती हैं। पहले यह माना जाता था कि मानसिक रोग मानसिक कारणों से होते हैं किन्तु आज यह चिन्तन बदल गया । आज यह हो गया कि असंतुलित भोजन के कारण, कुपोषण के कारण बहुत सारी मानसिक बीमारियां होती हैं । जैसे भोजन का असंतुलन, वैसे ही मन का असंतुलन । ये दोनों आज समस्या बने हुए हैं । हम चाहते हैं कि आदमी बहुत अच्छा व्यवहार करे, बहुत अच्छा बने, पर नहीं बनता । इसके पीछे कारण है कि हमारा संतुलन किसी भी दिशा में नहीं होता है । मानसिक संतुलन के लिए श्वास का अभ्यास बहुत आवश्यक है ।
श्वास में केवल आप प्राणवायु ही नहीं लेते, कोरा ऑक्सीजन ही नहीं लेते, उसके साथ अनेक तत्त्व आपके शरीर में जाते हैं । प्राणशक्ति भी इसके साथ शरीर में जाती है। हम जी रहे हैं। केवल इन न्यूरोन्स, विटामिन्स के आधार पर नहीं जी रहे हैं । जीवन का सबसे बड़ा आधार है हमारी प्राणशक्ति । प्राणशक्ति रहती है तो आदमी अच्छे ढंग से जीता है। और प्राणशक्ति चूक जाती है तो हजार दवाइयां, हजार उपाय, हजार डॉक्टर मिल जायें, किसी को बचाया नहीं जा सकता । जीने का मुख्य आधार है हमारी प्राणशक्ति । हम दीर्घ श्वास के अभ्यास के द्वारा प्राण का भी संग्रह करते हैं । प्राण को कहीं से खरीदना नहीं पड़ता, कहीं से लाना नहीं पड़ता।
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