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मानसिक संतुलन जैसी बात है ? कभी ध्यान नहीं देते। जबकि श्वास हमारे सारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण मानदण्ड बना हुआ है, एक सूत्रधार बना हुआ है, जिसके आधार पर हमारे जीवन की सारी गतिविधियां बदलती हैं, उसके आधार पर हमारे जीवन की सफलता और असफलता को जाना जा सकता है। मानसिक संचलन तब तक नहीं हो सकता जब तक श्वास का संतुलन नहीं होता। हम दीर्घ श्वास-प्रेक्षा का प्रयोग कर रहे हैं। बहुत छोटा लगता है। आप पुलिसवालों को यह छोटी बात लगती होगी कि हम तो इतने-इतने बड़े अभ्यास कर चुके । परेड ग्राउन्ड में न जाने क्या-क्या कर चुके और इतने बड़े हो गये, पढ़े-लिखे भी हैं, इतना काम किया है और अब हमें बताया जा रहा है कि दीर्घ श्वास में बड़ी छोटी सी बात लगती है। अटपटी बात लगती होगी कि यह क्या ? क्या हम बच्चे हैं कि इस प्रकार की बातें बतलाई जाएं । सहज ही प्रश्न पैदा हो सकते हैं, पर मैं यह मानता हूं कि आज हिन्दुस्तान की लगभग ७० करोड़ जनता यदि सही ढंग से श्वास लेने लैंग आये तो शायद एक नयी पीढ़ी का निर्माण हो सकता है। नया चिन्तन, नया जीवन और जीवन की नयी पद्धति का निर्माण हो सकता है। हमारी गलत श्वास पद्धति के कारण इस प्रकार की मनोविकृतियां पैदा होती हैं कि आने वाली पीढ़ी भी इससे बच नहीं पाती । श्वास का इतना प्रभाव होता है हमारे जीवन पर । आवेगों पर तब तक नियन्त्रण नहीं किया जा सकता, जब तक सही ढंग से श्वास नहीं लिया जाये । सही ढंग से श्वास लेना बड़ी अद्भुत बात है । : जयपुर में दूसरा प्रशिक्षण शिविर चल रहा था। डॉ० कासलीवाल, जो मेडिकल साइन्स विशेषज्ञ हैं, उपस्थित थे। मैंने कहा-श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और छोड़ते समय पेट सिकुड़ना चाहिए। उन्होंने कहा-यह कैसे होगा ? बड़ा आश्चर्य हुआ उनको । कुछ विद्यार्थी कहते हैं कि हमें तो पुस्तकों में यही पढ़ाया जाता है कि सीना फूलना चाहिए; पेट फूलने की कोई जरूरत नहीं है । क्योंकि हम श्वास लेते हैं तो श्वास फेफड़े। से आगे नहीं जाता । पेट और फेफड़े के बीच में एक मांसपेशी होती हैं-डायाफ्राम । तनुपट कहा जाता है हिन्दी में जिसे । वह एक मांसपेशी होती है तो श्वास उसके नीचे जाता नहीं । ठीक बात है, श्वास उसके नीचे नहीं जाता किन्तु जब डायाफ्राम नहीं सरकता, जब तक मांसपेशी नीचे नहीं सरकती तो पेट को अच्छा व्यायाम नहीं मिलता। बहुत सारी पेट की बीमारियां छोटे श्वास के कारण होती हैं । बहुत सारी मानसिक बीमारियां इस गलत श्वास की
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