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________________ एकला चलो रे रहा । अकेला खाता है, उसे कुत्ते काटते हैं। दूसरों को खिलाना जानता है, जसे कुत्ते कभी नहीं काटते। . उसे उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। वह प्रभावित नहीं हुआ परिस्थिति से, बह अन्नभावित रहा । समझदारी से काध लिया। जो व्यक्ति परिस्थिति से प्रभावित नहीं होता, जो नहीं डरता, जो भय नहीं करता, जो अपने संतुलन को नहीं खोता और ठीक निर्णय लेता है अपनी मानसिक संतुलन की दिशा के कारण, वह पराजित नहीं होता, परास्त नहीं होता। ... प्रायः यह होता है कि हमारी मनःस्थिति परिस्थिति के अनुकूल बन जाती है। विकास का सूत्र है-मनःस्थिति परिस्थिति के अनुकूल न बने किन्तु परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने का प्रयत्न करे। एक गति होती है अनुस्रोत में और दूसरी गति होती है प्रतिस्रोत में । ये दो शन्न बहुत महत्त्वपूर्ण हैं--अनुषोत और प्रतिस्रोत स्रोत के पीछे चलना और खोत के प्रतिरोध में, चलना । अनुस्रोतमामी वह होता है जो स्रोत के साथ-साथ चलता है । प्रतिस्रोतगामी वह होता है जो स्रोत के प्रतिकूल चलता है । स्रोत में बह जाना, स्रोत के साथ चलना कोई बड़ी बात नहीं है। बहको जीबन की एक सामान्य घटना है । विशेष घटना वह होती है जो स्रोत के प्रतिकूल चलता है। ध्यान का अभ्यास और मानसिक संतुलन का अभ्यास प्रतिस्रोतगामी अभ्यास है। जी चाहता है कि मन खूब झटके । चंचल बना रहे। अब उस मन को स्थिर बनाना, अस्थिर से स्थिर करना, यह प्रतिस्रोत में चलना है। आदमी चाहता है कि श्वास का पता ही न चले। श्वास के प्रति भला ध्यान देने की क्या जरूरत है ? यह तो बेचारा ऐसा है कि बिना ध्यान दिये आता है और हमारी यह मनोवृत्ति है कि बिना ध्यान दिये आये उसकी उपेक्षा करना हमारा पहला धर्म है। हम उस व्यक्ति की सबसे ज्यादा उपेक्षा करते हैं जो उपेक्षा करने पर भी अपना काम करता चला जाता है । श्वास की आप 'कितनी ही उपेक्षा करें किन्तु आता है तब तक आता ही रहेगा। चाहे आप सोये रहें, चाहे जागते रहें । घलसे रहें, चाहे बैठे रहें । कुछ भी करें । यह एक ऐसा बेचारा है कि दुनिया में इससे बढ़कर कोई बेचारा नहीं। यह हर मिति में आपका साथ देता है पर इतना खतरनाक भी है कि जिस दिन साथ देना छोड़ना है उस दिन बस, सब कुछ समाप्त । फिर भी हम श्वास की बडी उपेक्षा करते हैं। क्याकभी ध्यान दिया ? यह भी कोई ध्यान देने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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