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मानसिक संतुलन है । इधर भोजन की सूचना मिली और उधर दरवाजे खुले । चारों तरफ से शिकारी कुत्ते झपट पड़े। बड़े खूखार कुत्ते ! भगदड़ मच गई। सभी राजकुमार प्रभावित हो गए। मनःस्थिति का सन्तुलन समाप्त हो गया । भोजन छोड़-छोड़कर वे भागने लगे। सारे राजकुमार भाग गये। केवल एक बचा, जो सबसे छोटा था । उसका नाम था श्रोणिक । वह बैठा रहा, भागा नहीं। भोजन कर लिया, पूरा भोजन किया। भोजन के बाद उठा और चला गया । दूसरा दिन हुआ। राजसभा जुड़ी । सौ राजकुमार सामने बैठे हैं । पूरी मंत्री परिषद्, अधिकारी, संसद के और नगर के कुछ प्रतिष्ठित लोग बैठे हैं । राजा ने कहा कि मैं आज अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करना चाहता हूं। लोगों को आश्चर्य हुआ। घोषणा की कौन-सी बात है। बड़ा राजकुमार ही तो होगा। राजा ने और स्पष्ट करते हुए कहा-मैं इस परम्परा को तोड़ना चाहता हूं। मैं उसे अपना उत्तराधिकारी बनाऊंगा जो सबसे योग्य होगा। मैंने योग्यता की कसौटी कर ली है। वह कसौटी अब आपके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूं। सारे राजकुमार भी चौकने हो गये।' हर व्यक्ति सोचने लगा कि किसका नाम आयेगा। शायद यही सोचने लगे कि मेरा नाम आएगा। व्यक्ति के मन में एक भावना होती है, आकांक्षा होती है । सब अपने-अपने मुंह की ओर देखने लगे। लोगों में भी बड़ा कुतूहल पैदा हो गया, सबमें जिज्ञासा जाग गई। बड़ी उत्कण्ठा पैदा हो गई कि क्या होगा ? राजा ने कहा--तुम लोग कल भोजन करने बैठे। भोजन किया ? सब-के-सब एक साथ बोले-'महाराज ! भोजन कैसे करते ? आपके अधिकारी बिलकुल व्यवस्था को जानते ही नहीं । त्यवस्था का कोई पता नहीं । इतने गैरजिम्मेवार हैं कि अपना दायित्व भी नहीं निभाते । हम तो भोजन करने बैठे और उधर से शिकारी कुत्ते भीतर आ गये। उन्होंने कोई व्यवस्था ही नहीं की, कैसे भोजन करते ?
क्या किसी ने भोजन नहीं किया ?
श्रेणिक बोला-महाराज ! मैंने किया । राजा बोला-तुम मूर्ख हो ।' ये सारे समझदार हैं। शिकारी कुत्ते आये । भोजन छोड़-छोडकर भाग गये । तुम वहां कैसे रहे ? कुत्ते काट खाते तो क्या होता ? श्रेणिक बोला—मैं मूर्ख नहीं। जो अकेला खाना चाहता है, कुत्ते उसे काटते हैं। जो दूसरों को खिलाना जानता है, कुत्ते उसे कभी नहीं काटते । मेरे सामने सौ थाल पड़े थे। कुत्ते आते गये, थाल सरकाता रहा । वे भी खाते रहे, मैं भी खाता
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