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एकला चलो रे -
लुप्त हो जाती है। आवेग के क्षणों और आवेश की स्थिति में मानसिक संतुन बिगड़ जाता है । प्रत्येक शासक के लिए यह आवश्यक है कि वह आवेगों पर नियन्त्रण पाये ।
असंतुलन के तीन मुख्य कारण हैं – तनाव, आवेग और अपने प्रति एक निराशा की भावना । जब निराशा की भावना होती है तो हर बात में संतु-लन बिगड़ जाता है ।
चौथा कारण है— बाह्य परिस्थितियों का प्रभाव । हम बहुत जल्दी प्रभावित होते हैं । एक है मनःस्थिति और दूसरी है परिस्थिति । परिस्थिति के अनुकूल हमारी मनःस्थिति बन जाती है । यद्यपि हमारी चेतना की स्थिति है मनःस्थिति, वह स्वतन्त्र होनी चाहिए । किन्तु परिस्थिति जैसी होती है, आदमी वैसा ही बन जाता है । बहुत कम लोग अपनी मनःस्थिति को परिस्थिति से मुक्त रख पाते हैं । और जो परिस्थिति से मुक्त रख पाते हैं वे ही लोग अच्छा निर्णय ले सकते हैं और अच्छा काम कर सकते हैं ।
एक घटना है ढाई हजार वर्षों पहले की । प्रसेनजित मगध का राजा था । उसने सोचा- मुझे अपने उत्तराधिकारी को नियुक्त करना है। पुरानी परम्परा थी कि जो बड़ा लड़का होता, वह राजा का उत्तराधिकारी बन जाता । किन्तु प्रसेनजित ने सोचा कि मैं ऐसा नहीं करूंगा ।
कभी-कभी ऐसा होता है इतिहास में कि कोई आदमी स्वतन्त्रता से काम करना चाहता है | बहुत सारे लोग तो लकीर के फकीर होते हैं, परम्परा के अनुसार चलते हैं, किन्तु कुछ लोग परम्परा से हटकर भी अपना काम करते हैं । और परम्परा से हटने वाले लोगों ने ही नया-नया विकास किया है । केवल रूढ़ि पर चलना, परम्परा पर चलना कोई नयी बात नहीं हो सकती और उसमें कोई नया विकास नहीं हो सकता ।
महाराजा प्रसेनजित ने सोचा कि मैं इस बात को नहीं मानता और मैं इस परम्परा को तोड़कर, मेरे सौ पुत्र हैं, उनमें से जो योग्यतम होगा उसे उत्तराधिकारी बनाऊंगा । उन्होंने उपाय सोचा कि कसौटी करू, परीक्षा करू ं, योग्यता को परखूं । अपने सारे अधिकारियों को सारी व्यवस्था, सारी योजना बता दी, समझा दिया और सौ राजकुमारों को भोजन के लिए एक पंक्ति में बैठा दिया । सौ थाल परोस दिए गये । भोजन की तैयारी होने वाली है । महाराज ऊपर बैठे हैं झरोखे में । सब देख रहे हैं । जैसे हो भोजन की तैयारी हुई, आदेश था कि जैसे ही सूचना मिले सबको भोजन शुरू करना
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