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________________ मानसिक संतुलन रखना चाहिए। यदि राजा नियन्त्रण खो देता है तो सारी प्रजा नष्ट हो जाती है । राजा के लिए बहुत आवश्यक था कि वह इन्द्रियजयी बने, आवेगों पर नियन्त्रण करने वाला बने । क्यों आवश्यक था ? जो शासक अपने आवेगों पर नियन्त्रण नहीं कर पाता, वह परिस्थिति को सही ढंग से समझ नहीं सकता । आवेगशील आदमी कभी परिस्थिति का सही अंकन नहीं कर सकता। दूसरी बात है कि वह सही निर्णय नहीं ले सकता। आवेश और तनाव में आया हुआ आदमी कोई सही निर्णय नहीं ले सकता । और सही निर्णय नहीं होता, उस स्थिति के परिणाम का बोध समाप्त हो जाता है। हमारे सामने दो स्थितियां होती हैं। एक है प्रवृत्ति की स्थिति और दूसरी है परिणाम की स्थिति । आदमी प्रवृत्ति पर ही सारा निर्णय ले तो बहुत गलत ही जाता है । हमारे निर्णय होने चाहिए परिणाम पर। प्रवृत्तिकाल में एक वात अच्छी लगती है किन्तु परिणाम जब अच्छा नहीं होता तो प्रवृत्ति में अच्छा लगने का अर्थ नहीं होता । एक बीमार आदमी है। पेट की बीमारी है । वह पूरा पचा नहीं सकता । अब खाने में गरिष्ट वस्तु सामने आ गई । मिठाई आ गई । बहुत भारी-भरकम चीज है। खाने में बहुत अच्छी लगती है । जीभ पर इसका स्वाद है। किन्तु परिणाम को न सोचे और खा जाये तो क्या परिणाम होगा ? अपच की बीमारी बढ़ेगी और मरणासन्न हो जाएगा। निर्णय और परिणाम-ये हमारे सामने जुड़े हुए रहने चाहिए। हम किसी भी वस्तु को काम में लें तो केवल प्रवृत्तिकाल को न देख, परिणामकाल को भी देखें । यह सोचें-इसका परिणाम क्या होगा ? आवेश में चांटा भी लगाया जा सकता है । लाठी भी उठाई जा सकती है । गोली भी चलाई जा सकती है । और कुछ भी किया जा सकता है । वह तो आवेश की स्थिति है। आदमी के आवेश में सब कुछ संभव हो सकता है । प्रवृत्ति के आधार पर निर्णय भी लिया जा सकता है। किन्तु इस बात को सोचें कि इसका परिणाम क्या होगा ? जब परिणाम का चिन्तन हमारे सामने स्पष्ट होता है तो स्थिति बदल जाती है । परिणाम को नहीं सोचते तो स्थिति उलझ जाती है । भारतीय दर्शन ने प्रवृत्ति को बहुत महत्त्व नहीं दिया। हमारा दर्शन परिणामवादी रहा है। परिणाम में अच्छा होता है—वह अच्छा है और परिणाम में बरा होता है वह बुरा है। अच्छाई और बुराई का मानदण्ड प्रवृत्ति को नहीं माना गया, किन्तु परिणाम को माना गया । यह परिणाम की स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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