________________
तनाव क्यों ? निवारण कैसे ?
३०५ की प्रक्रिया के लिए ही हुआ था। उसमें भी आज कठिनाई आ गई। ये सारे के सारे धर्मशास्त्र लगभग उपासना-प्रधान बन गए। उपासना पर बहुत बल दिया जा रहा है । धर्मस्थानों में जाना, नमस्कार करना, प्रार्थना कर लेना इस पर तो अतिरिक्त बल दिया जा रहा है । किन्तु अपनी चेतना का रूपान्तरण करना, इस पर कोई ध्यान नहीं और जब तक हमारी चेतना का रूपान्तरण नहीं होता, भीतर में चेतना नहीं बदलती तब कैसे होगा अच्छा व्यवहार और कैसे होगा आत्मानुशासन ? कैसे होगा अच्छा आचरण ? . क्योंकि भीतर में जो स्राव आ रहा है और बाहर से जो प्रभाव आ रहा है, वह सारा का सारा एड्रीनल ग्रन्थि से संबंधित ग्रोनार्ड स से संबंधित ही आ रहा है।
एक प्रश्न पूछा मया भारतीय दर्शन में कि-मैं कौन हूं? बहुत पूछा जाता रहा है । महर्षि रमण भी कहते, और भी बहुत सारे अध्यात्म के आचार्य कहते रहे हैं । एक बौद्ध साधक अपने गुरु के पास गया और बोला कि मैं जानना चाहता हूं कि मैं कौन हूं। तो गुरु ने चांटा मार दिया। फिर गया अपने बड़े गुरु के पास और जाकर बोला कि मैं गया था गुरु के पास और जाकर बोला कि मैं कौन हूं? उन्होंने एक चांटा जमा दिया। तो गुरु ने डंडा उठाया और बोले, उन्होंने तो चांटा ही मारा, मुझसे पूछता तो मैं डंडा मारता । यह भी कोई पूछने की बात है कि मैं कौन ? स्वयं खोजो मैं कौन हूं?
_ 'मैं कौन हूं,' इसकी यहां बहुत चर्चा हो रही है । मैं इसे दूसरी दृष्टि से सोचता हूं। 'मैं कौन हूं,' यह नम्बर दो का प्रश्न है। पहले नहीं होना चाहिए । पहले यह होना चाहिए कि 'मैं कहां हूं?' यह सबसे पहला प्रश्न है और सबसे महत्त्व का प्रश्न है । प्रश्न होना चाहिए-मेरी चेतना कहां है ? अगर हमारी चेतना नाभि के आसपास परिक्रमा कर रही है तो कितना ही कोई पढ़ जाए, पढ़ने का अर्थ कम होगा।
अभी दिल्ली में एक दिन डॉ० डी० एस० कोठारी, जो हिन्दुस्तान के बहुत बड़े वैज्ञानिक हैं, उनके साथ फिजिक्स के कई प्रोफेसर और दूसरे लोग आ गए । बातचीत हो रही थी, आचार्यश्री के सामने । मैंने डॉ० कोठारी से पूछा-यह बात समझ में नहीं आ रही कि आजकल वैज्ञानिक आत्महत्या बहुत करने लग गए हैं । वे पदोन्नति को लेकर या ऐसे ही सामान्य कारण से आत्महत्या कर लेते हैं। इतने बड़े विद्वान् वैज्ञानिक आत्महत्या कर लेते हैं.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org