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________________ एकला चलो रे हं कि आज के विद्यार्थी को कम से कम छह शाखाओं का ज्ञान अवश्य होना चाहिए । एनेटोमी, फिजियोलॉजी और साइकोलॉजी-ये तीन तो आज भी विद्या की शाखाएं हैं और तीन प्राचीन शाखाएं ये हैं-कर्मशास्त्र, योगशास्त्र और धर्मशास्त्र । इन छह विद्याओं का ज्ञान हो तो एक विद्यार्थी प्रबुद्ध और सफल विद्यार्थी बन सकता है । शिक्षा के बारे में आज कहा जाता है कि आज की शिक्षा प्रणाली गलत है, विद्यार्थी अच्छे नहीं निकलते । किन्तु हमारा ऐसा सोचता नहीं है। हम इसे स्वीकार नहीं करते। अभी दिल्ली में एक संगोष्ठी हई। उसमें केन्द्रीय शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव, यू० जी० सी० के चेयरमैन, एन० टी० आर० सी० के चेयरमैन आदि-आदि संबंधित लोग उपस्थित थे। गोष्ठी चली तो हमने बताया कि सब लोग जो यह कहते हैं कि शिक्षा प्रणाली गलत है, हम इस बात को स्वीकार नहीं करते । अगर शिक्षा प्रणाली गलत है तो आज अच्छे वकील, अच्छे डॉक्टर, अच्छे प्रोफेसर, बोटनी के अच्छे विशेषज्ञ, बायोलॉजी के विशेषज्ञ अपनी-अपनी कला में दक्ष कहां से आए ? अगर शिक्षा प्रणाली गलत है तो अच्छे आदमी कहां से आएंगे ? यह कहना भ्रान्ति है, ऐसा नहीं कहना चाहिए । बल्कि कहना तो यह चाहिए कि शिक्षा प्रणाली अपना ठीक काम कर रही है। जो तत्त्व दिया गया है, उसका काम तो ठीक हो रहा है किन्तु जिसका बीज बोया ही नहीं और फल की आशा करें और दोष थोपें वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर, यह बहुत गलत बात है । हम आशा करते हैं कि विद्यार्थी में अनुशासन आए, चरित्र आए तो अनुशासन और चरित्र का तत्त्व तो कोई विद्या की प्रणाली में है ही नहीं । और जो पढ़ाया जा रहा है वनस्पतिशास्त्र, पढ़ाई जा रही है केमिस्ट्री, पढ़ाई जा रही है भूगर्भ विद्या और हम आशा करें कि चरित्र आए, अनुशासन आए, कभी नहीं आएगा। विषय ही नहीं है । जीवन विज्ञान की शाखा होती है और विद्यार्थी में चरित्र नहीं आता तो हमें आश्चर्य होता और विद्या प्रणाली को दोषपूर्ण मान लेते । किन्तु वह तत्त्व तो है ही नहीं । हमने बीज ही नहीं बोया और हम आशा करें कि फल लग जाएगा, बड़ी निराशा होगी। हमें इस दृष्टि से विचार करना जरूरी है कि विद्यार्थी को जो पढ़ाया जा रहा है, उसमें तनाव मिटाने की प्रक्रिया जरूरी है। तनाव मिटाए बिना अच्छे व्यवहार और अच्छे आचरण की आशा करता हमारी भ्रान्ति है। हम तनाव को कैसे मिटा सकते हैं ? यह धर्मग्रंथों का काम था और परा धर्मशास्त्र का विकास इस तनाव-विसर्जन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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