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एकला चलो रे हम ‘णमो सिद्धाणं' का उच्चारण करते हैं। यह 'सिद्धाणं' सूर्य का सूचक है । हमारे शरीर के भीतर सूरज है, चांद भी है, बुद्ध, गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु भी हैं । हमारे शरीर के भीतर पूरा सौरमंडल है। इस सौरमंडल को पुराने हठयोग के आचार्यों ने चक्र कहा । आज के शरीरशास्त्री इसे प्लेक्षस् कहते हैं । जितने ग्लैण्डस् हैं, अन्तःस्रावी ग्रन्थियां हैं,—पीनियल, पिच्यूटरी, थाइराइड आदि-आदि और एड्रीनल-ये सारे के सारे सौरमंडल हैं । प्रेक्षाध्यान की परिभाषा में इन्हें चैतन्य-केन्द्र कहते हैं। ये चैतन्य केन्द्र हैं । यह हमारे भीतर का सौरमंडल है। जिस व्यक्ति का सूरज कमजोर बन गया तो उसकी बुद्धि कमजोर बन जाएगी। जिस व्यक्ति का बुद्ध और बृहस्पति कमजोर बन गया तो उस व्यक्ति की विवेकशक्ति और चिन्तनशक्ति कमजोर बन जाएगी। जिस व्यक्ति का चन्द्रमा कमजोर बन गया तो उस व्यक्ति का मन दुर्बल बन जाएगा, स्वास्थ्य भी कमजोर बन जाएगा। अब भीतर का सौरमंडल कमजोर बनता है, किसी ज्योतिषी से दिखाओ कुंडली, तो कहेगा'इस ग्रह का प्रभाव ठीक नहीं हो रहा है और ये गड़बड़ियां पैदा हो रही हैं।' __ नमस्कार महामंत्र के द्वारा अपने भीतर के सौरमण्डल को शक्तिशाली बनाया जा सकता है, शारीरिक और मानसिक बल को अधिक विकसित किया जा सकता है । हम जब नमस्कार महामंत्र का भावना के साथ उच्चारण करते हैं तो उस उच्चारण के पांच चैतन्यकेन्द्र होते हैं । ‘णमो अरहंताणं'-इसका ध्यान किया जाता है मस्तिष्क पर। यह ज्ञानकेन्द्र है हमारा। ‘णमो सिद्धाणं'-इसका ध्यान किया जाता है दर्शनकेन्द्र पर। दोनों भृकुटि और दोनों आंखों के बीच । ‘णमो आयरियाणं'--इसका ध्यान किया जाता है विशुद्धिकेन्द्र पर, यानी थाइराइड पर, कंठ का मध्य भाग-कंठमणि पर। 'णमो उवज्झायणं' का ध्यान किया जाता है आनन्दकेन्द्र पर । हृदय के पास जो गड्ढा है उसे आनन्दकेन्द्र या अनाहतचक्र कहते हैं । 'णमो लोए सव्वसाहूणं' का ध्यान किया जाता है शक्तिकेन्द्र पर, जो रीढ़ की हड्डी के निचले सिरे में है और ऐसा लगता है कि असंख्य चांदी के चमकते हुए तार विभक्त हो रहे. हैं। वहां इसका ध्यान किया जाता है।
ये पांच चैतन्य-केन्द्र हैं, पांच पद हैं और पांच रंग हैं । 'णमो अरहताणं'का सफेद रंग के साथ, ‘णमो सिद्धाणं' का लाल रंग के साथ, बाल सूर्य के रंग जैसा, ‘णमो आयरियाणं' का पीले रंग के साथ, ‘णमो उवज्झायणं' का
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